सभी भाषाएँ एक-दूसरे की पूरक हैं: प्रतिकुलपति - मधेपुरा खबर Madhepura Khabar

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10 जनवरी 2019

सभी भाषाएँ एक-दूसरे की पूरक हैं: प्रतिकुलपति

मधेपुरा
राष्ट्र की अस्मिता राष्ट्रभाषा की अस्मिता से जुड़ा है. यदि हम राष्ट्रभाषा की अस्मिता का ख्याल नहीं रखेंगे, तो राष्ट्र की अस्मिता भी खतरे में रहेगी. यह बात प्रति कुलपति डॉ. फारूक अली ने कही. वे गुरूवार को स्नातकोत्तर हिंदी विभाग में आयोजित संगोष्ठी में उद्घाटनकर्ता के रूप में बोल रहे थे.
                  संगोष्ठी का विषय हिंदी की वैश्विक अस्मिता था. प्रति कुलपति ने कहा कि राष्ट्र एवं राष्ट्रभाषा सर्वोपरि है. हमें दोनों की अस्मिता की रक्षा के लिए हमेशा सजग रहना चाहिए. जैसा कि इकबाल ने कहा, "हिंदी हैं हम वतन है हिन्दोस्ताँ हमारा." प्रति कुलपति ने कहा कि हिंदी सबसे सरल भाषा है. उर्दू एवं अन्य भारतीय भाषाएँ इसकी सगी बहनें हैं. सभी भाषाएँ एक-दूसरे की पूरक हैं. उन्होंने भाषा को धर्मिक एवं राजनीतिक संकीर्णता से नहीं जोड़ने की अपील की.
                     प्रतिकुलपति ने कहा कि प्राथमिक स्तर से हिंदी में शिक्षा दी जाए. विज्ञान एवं दर्शन सहित सभी विषयों के पाठ्यक्रमों को हिंदी में उपलब्ध कराएं. भाषा को धर्म एवं जाति से जोड़ना खतरनाक है. ऐसा नहीं किया जाना चाहिए. मानविकी संकायाध्यक्ष डाॅ. ज्ञानंजय द्विवेदी ने कहा कि हिंदी भारतीय सभ्यता-संस्कृत की संवाहक है. बाजारवाद के कारण इस पर संकट आ गया है. जिस राष्ट्र की सांस्कृतिक एवं भाषायी पहचान नहीं हो, वह गुलाम हो जाता है.
                       सामाजिक विज्ञान संकाय अध्यक्ष डाॅ. शिवमुनि यादव ने कहा कि आज हिंदी वैश्विक भाषा बन गई है. साथ ही यह एक ताकतवर भाषा भी है. पूर्व विभागाध्यक्ष डाॅ. इन्द्र नारायण यादव ने कहा कि आज हिंदी विश्व की दस प्रमुख भाषाओं में एक हैं. ह हिंदी चीनी को पछाड़ कर विश्व में सर्वाधिक बोलने वाली भाषा हो गई है. हमारे छात्र अपने हृदय में हिंदी को स्थान दें, तो हिंदी विश्व में सभी क्षेत्रों में प्रथम आएगी. विषय प्रवेश कराते हुए डाॅ. सिद्धेश्वर काश्यप ने कहा कि दस जनवरी 1975 को नागपुर में पहला विश्व हिंदी सम्मेलन आयोजित किया गया था.
                     हिन्दी की वैश्विक अस्मिता है. यह विश्व के अनेक देशों में प्रचलित है. अमेरिका, रूस, चीन आदि देशों में भी प्रचलित है. 125 विश्वविद्यालयों में हिंदी की पढ़ाई होती है. बीएनमुस्टा के महासचिव डाॅ. नरेश कुमार ने कहा कि संविधान में हिंदी के विकास हेतु कई प्रावधान किए गए हैं. हिंदी अन्य भारतीय भाषाओं के साथ मिलकर विकसित हो रही है. लेकिन हिंग्लिश हिंदी के लिए चुनौती है. उपकुलसचिव (अकादमिक) डॉ. एम. आई. रहमान ने कहा कि हिंदी और उर्दू दोनों सगी बहनें हैं.
                    दोनों का एक साथ विकास हुआ है. उन्होंने अपनी गजल "आलम-ए-तनहाई" सुनाई. पीआरओ डॉ. सुधांशु शेखर ने कहा कि हिंदी भारतीय परंपरा में विकसित हुई है .इसमें सबों को एक साथ लेकर आगे बढ़ने की क्षमता है. उन्होंने विभाग के अंतर्गत शीघ्र ही पत्रकारिता एवं जनसंचार में डिप्लोमा पाठ्यक्रम की शुरूआत होने की उम्मीद जताई और इसके लिए कुलपति एवं प्रति कुलपति को साधुवाद दिया. डाॅ. वीणा कुमारी ने कहा कि हिंदी में बोलने में हीनताबोध नहीं होनी चाहिए.
                    उन्होंने एक कविता भी प्रस्तुत की, "भारत के माथे की बिंदी है हिंदी."डॉ. सरोज कुमार ने कहा कि भाषा शक्ति है. यही सभी तरह की प्रगति का मूल है. हमें अपनी भाषा पर गर्व होना चाहिए. उन्होंने अपनी कविता "भीड़ का हर चेहरा हैवान हो गया ..." का पाठ किया. कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए हिंदी विभाग के अध्यक्ष डॉ. सीताराम शर्मा ने कहा कि हिंदी की अस्मिता देश की अस्मिता है.
                       समारोह में विज्ञान संकायाध्यक्ष डाॅ. अरूण कुमार मिश्र, विकास पदाधिकारी डाॅ. ललन प्रसाद अद्री, डॉ. आर. के. पी. रमण, डॉ. सुभाष झा, डॉ. मनोरंजन प्रसाद, डॉ. वीणा कुमारी, डॉ. मीरा, डॉ. दीपक कुमार राणा, सोनम सिंह, राहुल, सन्नी, प्रिंस, ममता, माही, विद्यासागर, सुप्रिया, रवीन्द्र, दीपा, अनिल, पूजा, अंजना, अर्चना, कुंदन आदि उपस्थित थे.
(रिपोर्ट:- ईमेल) 

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