मधेपुरा
सभी रिश्तों की अपनी मर्यादा है किसी एक को किसी दूसरे से तुलना करना जायज नहीं है. वैलेंटाइन वीक चल रहा है. लोग विरोधात्मक रूप से मां की तुलना प्रेमिका / पत्नी से करते नजर आ रहे हैं.
मगर क्या पत्नी और मां का संबंध एक हीं जैसा है, नहीं... मां सिर्फ मां होती है और पत्नी सिर्फ पत्नी. दोनों हीं रिश्ते में अपना एक दायरा है. मां महान होती है, उन्होंने जन्म दिया, पालन-पोषण किया.. पूजनीय है. प्रेमिका/पत्नी अपनी जिंदगी, जीने के तौर-तरीके, संबंधों, यहां तक की सरनेम भी बदलकर नये संबंधों में ढल जाती है. उनका अपना किरदार है.
मुझे तो यही लगता है कि जो लोग अपने संबंधों में स्थायित्व निर्माण नहीं कर पाते, संबंधों की मूलता, उनकी पहचान नहीं समझ पाते वैसे लोग हीं एक रिश्ते को दूसरे रिश्ते से झेंप देना चाहते हैं. ऐसा कुछ नहीं है कि पत्नी/प्रेमिका होने से मां से रिश्ता बदल जाता है. बस जिम्मेदारियों का आकार वृहद हो जाता है और जो लोग अपनी जिम्मेदारियों को निभाने में निकम्मे होते हैं वो अपनी इन हरकतों का जिम्मेदार कुछ समय के बाद मां के लिए उस लड़की या कभी-कभी उस लड़की के लिए मां को ठहराते हैं.
वास्तविकता तो ये है कि मां सिर्फ मां है, पिता सिर्फ पिता, बहन सिर्फ बहन, और पत्नी केवल पत्नी. जिस प्रकार राखी बांधने के लिए बहन होना जरूरी है मां के होने से राखी के त्योहार का कुछ अर्थ नहीं ठीक उसी तरह जीवनसंगिनी का भी किरदार है. एक खास बात और है... जिस तरह लड़के अपनी प्रेमिका की तौहीन कर रहे हैं वैलेंटाइन पर मां के रिश्ते के साथ उनकी तुलना कर... उसी प्रकार किसी लड़की को अपने प्रेमी / पति की तुलना उनके भाई के साथ करते अमूमन नहीं देखा जाता.
भई, करवाचौथ का चांद पिता को देखकर नहीं देखा जाता केवल पति हीं इसका अधिकारी है. सात फेरों के लिए मां नहीं बनी है, मां तो जन्मदायिनी है मगर पत्नी वंशवाहिनी. जिस लाज शर्म से लोग रिश्तों की मर्यादा बचाते-बचाते इतनी संजीदगी से सभी रिश्तों के मुंह पर कालिख पोत रहे हैं यह गलत मानसिकता का परिचय हीं है. निपुणता और कर्मठता तो यह होगी कि सभी रिश्तों में समन्वय स्थापित किया गया हो और सबका उचित सम्मान भी. जिस तरह वैलेंटाइन वीक है, मदर्स, फादर्स, सिस्टर्स, ब्रदर्स डे भी तो है. फिर यूं रिएक्शन क्यों? हैप्पी वैलंटाइन वीक.
(स्पेशल रिपोर्ट :- गरिमा उर्विशा)
सभी रिश्तों की अपनी मर्यादा है किसी एक को किसी दूसरे से तुलना करना जायज नहीं है. वैलेंटाइन वीक चल रहा है. लोग विरोधात्मक रूप से मां की तुलना प्रेमिका / पत्नी से करते नजर आ रहे हैं.
मगर क्या पत्नी और मां का संबंध एक हीं जैसा है, नहीं... मां सिर्फ मां होती है और पत्नी सिर्फ पत्नी. दोनों हीं रिश्ते में अपना एक दायरा है. मां महान होती है, उन्होंने जन्म दिया, पालन-पोषण किया.. पूजनीय है. प्रेमिका/पत्नी अपनी जिंदगी, जीने के तौर-तरीके, संबंधों, यहां तक की सरनेम भी बदलकर नये संबंधों में ढल जाती है. उनका अपना किरदार है.
मुझे तो यही लगता है कि जो लोग अपने संबंधों में स्थायित्व निर्माण नहीं कर पाते, संबंधों की मूलता, उनकी पहचान नहीं समझ पाते वैसे लोग हीं एक रिश्ते को दूसरे रिश्ते से झेंप देना चाहते हैं. ऐसा कुछ नहीं है कि पत्नी/प्रेमिका होने से मां से रिश्ता बदल जाता है. बस जिम्मेदारियों का आकार वृहद हो जाता है और जो लोग अपनी जिम्मेदारियों को निभाने में निकम्मे होते हैं वो अपनी इन हरकतों का जिम्मेदार कुछ समय के बाद मां के लिए उस लड़की या कभी-कभी उस लड़की के लिए मां को ठहराते हैं.
वास्तविकता तो ये है कि मां सिर्फ मां है, पिता सिर्फ पिता, बहन सिर्फ बहन, और पत्नी केवल पत्नी. जिस प्रकार राखी बांधने के लिए बहन होना जरूरी है मां के होने से राखी के त्योहार का कुछ अर्थ नहीं ठीक उसी तरह जीवनसंगिनी का भी किरदार है. एक खास बात और है... जिस तरह लड़के अपनी प्रेमिका की तौहीन कर रहे हैं वैलेंटाइन पर मां के रिश्ते के साथ उनकी तुलना कर... उसी प्रकार किसी लड़की को अपने प्रेमी / पति की तुलना उनके भाई के साथ करते अमूमन नहीं देखा जाता.
भई, करवाचौथ का चांद पिता को देखकर नहीं देखा जाता केवल पति हीं इसका अधिकारी है. सात फेरों के लिए मां नहीं बनी है, मां तो जन्मदायिनी है मगर पत्नी वंशवाहिनी. जिस लाज शर्म से लोग रिश्तों की मर्यादा बचाते-बचाते इतनी संजीदगी से सभी रिश्तों के मुंह पर कालिख पोत रहे हैं यह गलत मानसिकता का परिचय हीं है. निपुणता और कर्मठता तो यह होगी कि सभी रिश्तों में समन्वय स्थापित किया गया हो और सबका उचित सम्मान भी. जिस तरह वैलेंटाइन वीक है, मदर्स, फादर्स, सिस्टर्स, ब्रदर्स डे भी तो है. फिर यूं रिएक्शन क्यों? हैप्पी वैलंटाइन वीक.
(स्पेशल रिपोर्ट :- गरिमा उर्विशा)