मुरलीगंज: दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान दिल्ली, द्वारा के.पी. कॉलेज के सामने मुरलीगंज में 21 से 29 अक्टूबर तक, आयोजित नौ दिवसीय "श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान यज्ञ" का दुसरे दिन सर्वश्री आशुतोष महाराज जी की शिष्या कथा व्यास भागवत भास्कर महामनस्विनी साध्वी सुश्री कालिन्दी भारती ने चर्तुथ स्कंध् का व्याख्यान करते हुए कहा कि ध्रुव की बाल अवस्था है लेकिन वो प्रभु से मिलने की उत्कंठा लिए वन में जाकर तपस्या करना शुरु कर देता है. जहाँ पर उसकी भेंट नारद जी से होती है जो उसको ब्रह्म ज्ञान प्रदान कर घट के भीतर ही ईश्वर के प्रत्यक्ष दर्शन करवा देते हैं. आज मानव भी प्रभु से मिलने के लिए तत्पर है लेकिन उसके पास प्रभु प्राप्ति का कोई भी साधन नहीं है. हमारे समस्त वेद-शास्त्रों व धार्मिक ग्रन्थों में यही लिखा गया है कि ब्रह्म ज्ञान की प्राप्ति के लिए केवल गुरु की शरणागति होना पड़ता है. गुरु ही शिष्य के अज्ञान तिमिर को दूर कर उसमें ज्ञान रूपी प्रकाश को उजागर कर देता हैं. उन्होंने कहा कि जब भी एक जीव परमात्मा की खोज में निकलता है तो वह सीधे परमात्मा को प्रसन्न नहीं कर पाता है. गुरू ही है जो जीव और परमात्मा के मध्य एक सेतु का कार्य करता हैं. परमात्मा जो अमृत का सागर है किंतु मानव उस अमृतपान से सदा वंचित रह जाता है.
पिपासु मनुष्य तक मेघ बनकर जो अमृत की धारा पहुंचाता है वह सद्गुरू है. सद्गुरू से संबंध् हुए बिना ज्ञान नहीं हो सकता। सुश्री साध्वी कालिंदी भारती जी ने कहा कि अगर आप भी उस परमात्मा को जानना चाहते हैं तो आप को भी ऐसा ही मार्गदर्शक चाहिए. यह तो सर्वविदित है कि सूर्य प्रकाशमय तत्त्व है और चन्द्रमा भी प्रकाशमय है, किन्तु चन्द्रमा का अपना कोई प्रकाश नहीं है. जब सूर्य सुबह प्रकाशित होता है तब उसके प्रकाश से ही चन्द्रमा तपता है और रात को वही ताप शीतल होकर शीतलता प्रदान करता है. ऐसे ही गुरु भी सूर्य के समान हैं तथा चन्द्रमा एक शिष्य के समान. गुरु रूपी सूर्य के प्रकाश में तप कर ही शिष्य दुनियाँ को शीतलता प्रदान करने वाला ज्ञान आगे फैलाता है.
कबीर जी को प्रकाशित करने वाले सूर्य रूपी गुरु रामानंद जी थे, नरेन्द्र को विवेकानंद बनाने वाले श्रेष्ठ गुरु स्वामी रामकृष्ण परमहंस जी थे, शिवा जी मराठा के अपरिमित बल के पीछे समर्थ गुरु रामदास जी की असीम शक्ति व प्रेरणा कार्य कर रही थी. अतः गुरु के बिना हम भी उस परमात्मा तक कदापि नहीं पहुँच सकते. गुरू इस संसार सागर से पार उतारने वाले हैं और उनका दिया हुआ ज्ञान, नौका के समान बताया गया है. मनुष्य उस ज्ञान को पाकर भवसागर से पार और कृतकृत्य हो जाता है.
(रिपोर्ट:- चिराग कुमार शाह)
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