आज के परिवेश को देखा जाए तो हमारे चहुं ओर अश्लीलता ही अश्लीलता है: साध्वी - मधेपुरा खबर Madhepura Khabar

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24 अक्तूबर 2021

आज के परिवेश को देखा जाए तो हमारे चहुं ओर अश्लीलता ही अश्लीलता है: साध्वी

मुरलीगंज: दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान दिल्ली, द्वारा के.पी. कॉलेज के सामने मुरलीगंज में 21 से 29 अक्टूबर तक, आयोजित नौ दिवसीय "श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान यज्ञ" का तीसरे दिन सर्वश्री आशुतोष महाराज जी की शिष्या कथा व्यास भागवत भास्कर महामनस्विनी साध्वी सुश्री कालिन्दी भारती ने कहा कि अजामिल ने एक अश्लील दृश्य देखा और वह पतन के गर्त में गिर गया. यदि आज के परिवेश को देखा जाए तो हमारे चहुं ओर अश्लीलता ही अश्लीलता है. अश्लील फिल्मी पोस्टर गलियों में, बाजारों में देखने को मिल जाते हैं, अश्लील गाने सुन को मिल जाते हैं. आज मानव ने वासना व अश्लीलता की हदें ही पार कर दी है. 

वैज्ञानिकों के डेटाबेस के हिसाब से इंटरनेट पर सन् 1998 में 140 लाख अश्लील पृष्ठ थे। सन् 2003 में ये बढ़कर 2600 लाख और सन् 2004 में 4200 लाख हो गए. आज छः व सात वर्षों के उपरांत ये 20 गुणा बढ चुके हैं. 8-16 वर्ष के बच्चों में से 90° बच्चे अपना होमवर्क करते हुए इंटरनेट पर अश्लील चित्र देखते हैं बालक ही नहीं हर वर्ग व आयु के लोग आज कामुकता की इस शर्मनाक दौड़ में हांफ रहा हैं. इंटरनेट के सर्च इंजन्स शीलहीन या अभद विषयों और वेबसाइटों की खोज करने में व्यस्त होते हैं. आप विचार करें आज कितनी अश्लील फिल्में, अस्लील गाने, हैं जिनमें रिश्तों की मर्यादा खत्म कर दी जाती है. और जब कोई ऐसी फिल्म देखेगा, चाहे वह बच्चा हो या नौजवान उसका मन कितना दूषित हो जाएगा.  
दूषित व वासना से पूरित मन के कारण बलात्कार जैसी घटनाएं घट रहीं हैं, नारी शोषण हो रहा है. रिश्तों की पवित्रता व मर्यादा वासना की वेदी पर चढ़ती जा रहीं है. चरित्र दिन प्रति दिन गिरता ही जा रहा हैं. यदि चरित्र गिर गया तो समझे सब कुछ चला गया. तभी महापुरुषों ने कहा कि चरित्र की रक्षा करना तो प्रत्येक मनुष्य का प्रथम कर्त्तव्य है. चरित्र हमारे जीवन का सबसे अनमोल रत्न है. यही हमें सफलता की उचाइयों या पतन की खाइयों में धकेलता है. शिक्षा के द्वारा चरित्र का निर्माण नहीं हो सकता क्योंकि रावण भी शिक्षित था परंतु उसका आचरण गिरा हुआ था आज शिक्षित कहलवाने वाला वर्ग चरित्रहीन हो रहा है. 

सदचरित्रता शिक्षा व बाह्य परिस्थितियों पर निर्भर नहीं करती. शास्त्र कहते हैं- 'पहले जागरण, फिर सदाचरण' जागरण की नींव पर ही सुंदर आचरण की दीवार का निर्माण संभव है. जागरण का भाव अपने भीतर के तत्त्व रूप का दर्शन करना. यह केवल एक पूर्ण गुरु की कृपा से ही संभव होती है. जागरण के पश्चात मनुष्य जान लेता है कि उसमें परमात्मा की सत्ता विराजित है. फिर धीरे-धीरे साधना- सुमिरन द्वारा उसके कलुषित विचार, दुर्भावानाएं एवं बुरे संस्कार ज्ञानाग्नि में भस्म हो जाते हैं. उसका चरित्र निखरता जाता है. 
(रिपोर्ट:- चिराग कुमार शाह) 
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