भाई-बहन के अटूट बंधन का प्रतीक है सामा-चकेवा - मधेपुरा खबर Madhepura Khabar

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18 नवंबर 2021

भाई-बहन के अटूट बंधन का प्रतीक है सामा-चकेवा

मधेपुरा: हमारी अनूठी संस्कृति व परंपरा सामा-चकेवा के रूप में आज भी जिदा हैं. भाई-बहन के अटूट प्रेम का प्रतीक सामा-चकेवा हमारी लोक-परंपरा का अनूठा उदाहरण है. पारंपरिक लोकगीतों से जुड़ा सामा-चकेवा हमारी संस्कृति की वह खासियत है जो सभी समुदायों के बीच व्याप्त जड़ बाधाओं को तोड़ता है. सामा चकेवा पर्व का संबंध पर्यावरण से भी है. सामा चकेवा की तैयारियां दीपावली के समय से ही शुरू हो जाती हैं. कार्तिक मास की पंचमी शुक्ल पक्ष तिथि से सामा चकेवा के मूर्ति बनाने का कार्य शुरू हो जाता है. पंचमी से पूर्णिमा तक चलने वाला यह लोकपर्व उत्साह और उल्लास से पूरी तरह सरावोर है. 

आठ दिनों तक यह उत्सव मनाया जाता है और नौवें दिन बहनें अपने भाइयों को धान की नई फसल का चूड़़ा एवं दही खिला कर सामा-चकेवा की मूर्तियों को तालाब में विसर्जित कर दिया जाता है. गुरुवार की देर शाम  जिले भर में काफी हर्षोल्लास व आस्था के साथ मनाया गया. जानकारी के अनुसार, इस लोकपर्व में सामा-चकेवा सहित विभिन्न पात्रों के प्रतिमा बनाने का सिलसिला भैया दूज के दिन से शुरू होकर कार्तिक पूर्णिमा की रात में संपन्न होती है. महिलाओं द्वारा मिट्टी से पहले सिरी सामा, फिर चकेवा, सतभैंया, खररूची भैया, बाटो-बहीनों, कचबचिया, भमरा और पौती का निर्माण अपने हाथों से किया जाता है.  
उसके पश्चात कास के खर से वृंदावन व जूट अर्थात सन से चुगला का निर्माण करने के उपरान्त उसे धूप में सुखाकर सारी मूर्तियों को चावल के पीठार में डूबाकर रोली व चंदन से रंगा जाता है. तत्पश्चात कार्तिक पूर्णिमा की देर संध्या में महिलाओं द्वारा बांस से निर्मित चंगेरे में सामा-चकेवा सहित सभी मूर्तियों को रख पौती में नया धान से तैयार चूड़ा व गुड़ रखकर मां भगवती के घर में ले जाकर सिरी और सामा का आदान-प्रदान किया गया. इसके उपरांत समूह में सामा-चकेवा का लोकगीत गाते हुए गांव से बाहर जुताई किए गए खेत में पहुंचकर एक साथ समूह में सामा-चकेवा का खेल खेली. महिलाओं द्वारा खेल के दौरान चुगला व वृंदावन की मूर्ति में आग लगाकर जलाया गया.

फिर बाटो-बहीनों की मूर्ति को चौराहे पर रखकर अपने-अपने भाई के कल्याणार्थ सामा को वापस लाकर भाई के द्वारा उसे घुटने से तोड़बाने के उपरांत द्वापर युगीन प्रेम कथा पर अधारित उक्त लोकपर्व का समापन किया गया. मौके पर बहनों ने अपने भाई की मंगल कामना व उसके कल्याणार्थ लोकगीत गाते हुए चुड़ा व गुड़ से भरे पौती अपने-अपने भाई को प्रदान की.
(रिपोर्ट:- सुनीत साना) 
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