मधेपुरा: नौ मई 1981 को बिहार के नक्शे पर जिले के रूप में आया मधेपुरा अपनी स्थापना का चालीस साल पूरा कर नौ मई को 41 वीं स्थापना दिवस मनाने जा रहा है. स्थापना दिवस के चौदह दिन मात्र शेष रह गया है लेकिन जिला स्थापना दिवस को लेकर प्रशासनिक स्तर पर कोई चहलकदमी नहीं होना कई सवालों को जन्म दे रहा है. उक्त बातें वाम छात्र संगठन एआईएसएफ के बीएनएमयू प्रभारी हर्ष वर्धन सिंह राठौर ने कही. छात्र नेता ने कहा कि यह दुखद है कि जिले के स्थापना दिवस को लेकर प्रशासनिक स्तर से दिलचस्पी नहीं दिखाई जा रही है जिससे यह तय है कि स्थापना दिवस को औपचारिक रूप से मनाने की कोशिश होगी जिसे किसी कीमत पर स्वीकार नहीं किया जा सकता.
एआईएसएफ नेता राठौर ने डीएम से मांग किया कि विगत दो वर्षों में कोरोना के कारण स्थापना दिवस नहीं मना पाया इसलिए नौ मई को स्थापना दिवस को वृहद स्तर पर मनाने की तैयारी हो और इसमें स्थापना के उद्देश्य, सफर, उपलब्धि को संग्रहित करने व चुनौती पर मंथन की जरूरत है. हर जिला वासी के लिए यह गौरव का विषय है कि मधेपुरा स्थापना का चालीस साल का शानदार सफर तय कर चुका है इस दौरान राजनीति, शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, खेल सहित विभिन्न क्षेत्रों में मधेपुरा ने प्रांतीय राष्ट्रीय ही नहीं बल्कि अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति भी अर्जित की है जो पूरे सफर का धरोहर है. विद्युत रेलवे इंजन कारखाना, विश्वविद्यालय, मेडिकल कॉलेज, नारियल विकाश बोर्ड आदि मधेपुरा के बढ़ते कदम की बानगी मात्र है.
छात्र नेता राठौर ने कहा कि इन उपलब्धियों को लोगों के बीच ले जाने की जरूरत है जिससे हर जिले वासी को अपने जिले के गौरव का ज्ञान हो. जिला प्रशासन की उदासीनता पर नाराजगी जाहिर करते छात्र नेता राठौर ने कहा है कि पहले जिला स्थापना दिवस पर स्मारिका प्रकाशित होने के साथ साथ बच्चों के बीच प्रतियोगिता, खेलकूद, जिले के गौरव बढ़ाने वाली प्रतिभाओं का सम्मान होता था. लेकिन विगत कुछ वर्षों में इन सब चीजों को भुला दिया गया है और आयोजन औपचारिकता में सिमटने लगी है. कुछ वर्षों में पनपी इस परम्परा पर रोक लगाने की जरूरत है आज आलम यह हो गया है कि सरकारी कार्यालयों पर झालर लटका और एक सांस्कृतिक कार्यक्रम कर स्थापना दिवस के नाम पर जिला प्रशासन द्वारा जिम्मेदारी का इति श्री कर लिया जाता है.
दो वर्षों बाद एक बार फिर मौका मिला है माहौल सामान्य है इसलिए जिला स्थापना दिवस यादगार बनाने की पहल जिला प्रशासन अविलंब शुरू कर पुराने अंदाज में स्मारिका प्रकाशन ,प्रतियोगिता, खेलकूद, प्रतिभाओं का सम्मान की पहल कर जिले के चालीस साल के सफर को यादगार रूप दे न कि समय कम होने का रोना रोकर औपचारिकता का निर्वहन की साजिश रूपी पहल हो.
(रिपोर्ट:- ईमेल)
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