मधेपुरा: बीएनएमयू रिसर्च स्कॉलर सारंग तानय ने कहा कि बिहार सरकार के पर्यटन विभाग द्वारा आयोजित तीन दिवसीय सिहेश्वर महोत्सव में शास्त्रीय विधाओं की प्रस्तुति करवाने का मतलब है कला प्रेमियों के पसंद/इच्छा को नजर अंदाज करना. शास्त्रीय संगीत को संगीत का जनक माना जाता है, लेकिन महोत्सव में केवल शास्त्रीय गायन, वादन एवं नृत्य की प्रस्तुति करवाना कहीं से भी उचित एवं न्यायसंगत नहीं है. पिछले वर्ष भी महोत्सव में शास्त्रीय विधाओं की प्रस्तुति जिला प्रशासन द्वारा करवाई गई थी, जब महोत्सव के पहले दिन महोत्सव स्थल पर पर्याप्त संख्या में दर्शकों की भीड़ नहीं जुटी तो जिला प्रशासन ने आनन फानन में जिले के सभी सरकारी संगीत शिक्षकों (को सपरिवार) के नाम पत्र जारी कर महोत्सव स्थल पर अंत तक बने रहने का फरमान जारी कर दिया, ताकि महोत्सव में दर्शकों की भीड़ दिखाई जा सके.
उन्होंने डीएम श्याम बिहारी मीणा सर से अनुरोध है कि तीन दिवसीय महोत्सव में एक दिन स्थानीय कलाकारों की प्रस्तुति, दूसरे दिन शास्त्रीय गायन की प्रस्तुति एवं तीसरे दिन बॉलीवुड की नामी फिल्मी गायक/गायिका की प्रस्तुति करवानी चाहिए, ताकि कला प्रेमी के दिल आहत ना हो. लोग महोत्सव का नाम सुनकर दिलों में कई उम्मीदें लगा बैठते हैं कि इस साल भी कोई चर्चित नामी कलाकारों को नजदीक से देखने और सुनने मिलेगा, लेकिन जिला प्रशासन उनके सारे उम्मीदों पर पानी फेर देते हैं और उन दर्शकों के सामने शास्त्रीय विधाओं को प्रस्तुति करवा देते हैं. भीड़ इकट्ठा करने के लिए सभी सरकारी विद्यालयों के संगीत शिक्षकों को सपरिवार वहां जमा करवा देते हैं.
उन्होंने कहा कि उग्रतारा महोत्सव, मुंगेर महोत्सव, बाबा मटेश्वरधाम महोत्सव के तरह ही बॉलीवुड के ख्यातिप्राप्त कलाकारों को महोत्सव के अंतिम दिन विशेष रूप से बुलावें. औपचारिक खानापूर्ति ना करवायें, पर्यटन विभाग ने सिंहेश्वर महोत्सव के लिए ₹30 लाख की राशि भी आवंटित कर दी है. स्थानीय एवं जिलेवासियों की ख्वाहिशों को इस तरह लगातार नजरअंदाज नहीं करें.
(रिपोर्ट:- ईमेल)
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