मधेपुरा: भारत में सूचना का अधिकार एक मौलिक अधिकार हैै. सूचना का अधिकार अधिनियम 15 जून, 2005 में अस्तित्व में आया. इस अधिनियम ने सूचना के अधिकार के तहत जनसामान्य के लिए वो सारे द्वार खोल दिए, जो पहले बन्द हुआ करते थे. यह बात यह बात भारतीय आदिम जनजाति संस्थान, रांची की सचिव पूजा शुक्ला ने कही.
वे रविवार को बी. एन. मंडल विश्वविद्यालय, मधेपुरा के बीएनएमयू संवाद व्याख्यानमाला में बोल रही थीं. उन्होंने कहा कि सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 जन सामान्य को सूचना के संबंध में एक महत्वपूर्ण अधिकार देती है. इसकी धारा 8 में यह स्पष्ट रूप से लिखा गया है कि जिन सूचनाओं को संसद और राज्य विधायिका के समक्ष रखा जा सकता है, उन्हें जानने का पूरा अधिकार जन सामान्य को भी है.
उन्होंने कहा कि सूचनाओं को प्राप्त करके ही हम सार्थक जीवन की कल्पना कर सकते हैं. कुछ बोलने या लिखने के पूर्व विषय की पूरी जानकारी का होना अत्यंत आवश्यक होता है. संविधान के आर्टिकल 19 (a) में वर्णित अभिव्यक्ति की आजादी और आर्टिकल 21 में वर्णित जीवन जीने का अधिकार के लिए भी सूचना का अधिकार जरूरी है. हम इन दोनों को तभी सही रूप से उपयोग में ला सकते हैं, जब हमारे पास सूचना का आभाव ना हो.
उन्होंने कहा कि सूचना का अधिकार अधिनियम केंद्र सरकार, राज्य सरकार, पंचायती राज संस्थानों, लोकल बॉडीज और ऐसे निजी संस्थान जो सरकार की वित्तीय सहायता से चलते हैं पर लागू होता है. यह अधिनियम उनको स्पष्ट रूप से यह निर्देश देता है कि अपने कामकाज और निर्णय से जुड़ी सूचनाओं को उसे जनसामान्य को उपलब्ध कराना होगा. कोई भी जानकारी जो निवेदित की गई है, उसे तय समय सीमा में उबलब्ध कराना होगा.
इसके लिए संस्थानों में लोक सूचना पदाधिकार नियुक्त करने की व्यवस्था है. उन्होंने कहा कि सभ्य समाज की परिकल्पना को यथार्थ में परिवर्तित करने के लिए जनसामान्य अपने अधिकारों के साथ-साथ अपने कर्तव्यों पर भी ध्यान दें. हमें सूचना का अधिकार से जुड़े कर्तव्यों से भी अवगत होना अत्यंत आवश्यक है. उन्होंने कहा कि जब कभी सूचना से हमे वंचित किया जाये, तो हम आवेदन दे कर सूचना मांगे.
हमें सूचना माँगते वक्त कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए. सूचना के अभाव में ही आवेदन करें. प्रश्न सीधा हो और सामान्य भाषा में हो. अपनी पीड़ा का समाधान नही जानकारी को ध्यान में रख कर सूचना मांगें. प्रक्रिया को रोकने या चीजों को जटिल बनाने हेतु प्रश्न ना करें. अधिकारी से सूचना माँगे उसे दोषी मान कर खड़ी-खोटी ना लिखेंं. व्यक्तिगत प्रश्नों से बचें. सूचना के अधिकार को अधिकार समझ कर समुचित उपयोग करें उसे अवसर समझ कर दुरुपयोग ना करें.
(रिपोर्ट:- ईमेल)
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