नाटक के दूसरे हिस्से में आनंदी बैन जब पति की प्रेरणा से पढ़ाई शुरू कर अंततः डाक्टर बनकर विदेश से आती है तो बहुत से महिलाओ का उद्घारक बनती है. एक अशिक्षित अबोध बालिका से सुशिक्षित डाक्टर तक का संधर्षपूर्ण सफ़र उनके जीवनगाथा को समस्त बालिका के लिए प्ररेणा बना देती है. कैसे शिक्षा अंधविश्वास और पाखंड के कुहासा भरे लोक को खत्म कर जीवन-जगत के यथार्थ लोक को आलोकित करता है इसकी अनुभूति हमें नाटक के बहेतरीन प्रस्तुति से सहज ही होता है. ऐसा विश्वास पैदा होता है 'बेटी बचाओ,बेटी पढ़ाओ का जन काल्याणकारी नारा बिल्कुल सही है. दर्शकों के हृदय में यही विश्वास पैदा करना संस्था एवं रंगकर्मी का उद्देश्य है.
आनंदी और गोपालराव के किरदार को स्नेहा कुमारी और रंगकर्मी बिकास कुमार ने अपने जीवंत किरदार से मौजूद दशकों को भाव विभोर कर दिया. कार्यक्रम को सफल बनाने में संस्था के पल्लवी कुमारी और सोनम कुमारी ने अहम भूमिका निभाई. मौके पर प्राचार्य विभा कुमारी ने कहा कि बेटी को परिवार के केन्द्र में रहकर हकीकत की दुनिया में कई किरदार निभाना होता है. इसके अशिक्षित होने से इनके कई गलतफहमियां विकसित हो जाती है जिसका असर परिवार समाज पर पड़ता है. वही इसकी शिक्षा इन्हें सबल बनाती है. फलत: परिवार और समाज सबल बनती है. नाटक में इसी समस्या को असरदार ढंग से दिखाया गया है. इस अवसर पर विधालय के छात्राओं सहित शिक्षिका और शिक्षक मौजूद थे.
(रिपोर्ट:- ईमेल)
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