भारत में पहली बार ईवीएम से कब हुई थी मतदान? - मधेपुरा खबर Madhepura Khabar

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18 अप्रैल 2024

भारत में पहली बार ईवीएम से कब हुई थी मतदान?

डेस्क: लोकसभा और विधानसभा चुनावों में ईवीएम के इस्तेमाल से लेकर मतगणना तक चीजें आसान हो गई हैं. इतना ही नहीं, ईवीएम ने चुनाव करवाने का खर्च भी बहुत हद तक कम कर दिया है. हमारे देश में हर साल किसी ना किसी जगह पर चुनाव होते रहते हैं. इसी वजह से ईवीएम का महत्व काफी बढ़ गया है. हालांकि, चुनावों को सही से पूरा करवाना भी अपने आप में एक बड़ी चुनौती है. ईवीएम को शंकाओं, आलोचनाओं और आरोपों का भी सामना करना पड़ा है. हालांकि, चुनाव आयोग का कहना है कि स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव करवाने में ईवीएम बहुत अहम भूमिका निभाती है. 

ईवीएम क्या है

ईवीएम का सरल भाषा में मतलब होता है इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन. यह मशीन साधारण बैटरी से चलती है और ईवीएम मतदान के दौरान डाले गए वोटों को दर्ज करती है और वोटों की गिनती भी करती है. ईवीएम के दो पार्ट होते हैं. इसमें पहला हिस्सा बैलिटिंग यूनिट जो मतदाताओं के द्वारा संचालित किया जाता है. वहीं, दूसरा हिस्सा कंट्रोल यूनिट पोलिंग अफसरों की निगरानी में रहता है. ईवीएम के दोनों हिस्से पांच मीटर लंबे तार से जुड़े हुए होते हैं. एक ईवीएम में 64 उम्मीदवारों के नाम दर्ज हो सकते हैं. वोटों को दर्ज करने की क्षमता की बात की जाए तो एक ईवीएम में 3840 वोटों को दर्ज किया जा सकता है. भारत के दो पब्लिक सेक्टर कंपनियां भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड बेंगलोर और इलेक्ट्रॉनिक्स कारपोरेशन ऑफ इंडिया हैदराबाद चुनाव आयोग के लिए ईवीएम बनाते हैं. 

ईवीएम का पहली बार कब इस्तेमाल हुआ

अगर बात ईवीएम के सबसे पहले इस्तेमाल की करें तो साल 1982 में इसका उपयोग हुआ. केरल के परूर विधानसभा सीट के 50 मतदान केंद्रों पर वोटिंग करने के लिए ईवीएम का उपयोग किया गया. लेकिन इस मशीन के इस्तेमाल को लेकर कोई कानून न होने की वजह से सुप्रीम कोर्ट ने उस चुनाव को सिरे से खारिज कर दिया. इसके बाद ईवीएम मशीन के इस्तेमाल पर चुनावों में रोक लग गई थी. फिर साल 1989 में संसद ने लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 में संशोधन किया और चुनावों में ईवीएम के इस्तेमाल का प्रावधान किया. ईवीएम को भारतीय चुनाव में लाना रातों-रात का खेल नहीं था. बल्कि इसके लिए एक लंबी प्रक्रिया चली थी. 


ईवीएम के इस्तेमाल का अधिकार हासिल होने के बाद साल 1992 में विधि और न्याय मंत्रालय ने कानून के संशोधन की अधिसूचना जारी की थी. इसके बाद भी ईवीएम के उपयोग को लेकर आम सहमति साल 1998 में ही बन पाई. इस साल मध्य प्रदेश, राजस्थान और दिल्ली की 25 विधानसभा सीटों पर चुनाव कराए गए थे. साल 1999 में 45 सीटों पर हुए चुनाव में भी ईवीएम इस्तेमाल की गई. फिर साल 2000 के बाद देश के सभी लोकसभा, विधानसभा, उपचुनाव में ईवीएम के इस्तेमाल में बढ़ोतरी होनी शुरू हो गई थी. 2001 में तमिलनाडु, केरल, पश्चिम बंगाल और पुडुचेरी के सभी सीटों पर ईवीएम से ही चुनाव कराए गए. 2001 के बाद 3 लोकसभा और 110 से ज्यादा विधानसभा सीटों पर ईवीएम का इस्तेमाल किया गया. 

ईवीएम की जरूरत क्यों पड़ी

भारतीय लोकतंत्र में 'बूथ कैप्चरिंग' जैसी काफी समस्या साल 1957 के लोकसभा चुनाव में पैदा होने लग गई थी। एक घटना बेगूसराय जिले की मटिहानी विधानसभा सीट के रचियाही इलाके में भी घटित हुई थी. बूथ कैप्चरिंग, 1970 और 1980 के दशक के दौरान यह शब्द अखबारों की हेडलाइन में हुआ करता था. इस दौरान चुनाव में भाग लेने वाली राजनीतिक पार्टियों और उम्मीदवारों की संख्या में कई गुना बढ़ोतरी हो गई थी. उम्मीदवार धन और बल के जरिये चुनाव में विजयी होने के लिए बूथ कैप्चरिंग का नया हथकंडा अपनाने लगे थे. ऐसे में लोकसभा और विधानसभा चुनाव करवाने वाले निर्वाचन आयोग के लिए इस तरह की समस्या काफी बड़ी सिरदर्दी बनकर सामने आई थी. चुनाव आयोग बूथ कैप्चरिंग की घटनाओं में लगाम लगाना चाहता था. ताकि निष्पक्ष और स्वतंत्र रूप से चुनाव कराए जा सकें. धीरे-धीरे चुनाव आयोग चुनावी प्रक्रिया की सुधार की दिशा में काम करता रहा. इस कड़ी में आगे काम करते हुए सभी पार्टियों की सहमति के बाद ईवीएम यानि इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन लाई गई. 

ईवीएम पर कब-कब उठे सवाल

ईवीएम पर सत्ता से बाहर होने वाले राजनीतिक दल सवाल खड़े करते रहे हैं. 2009 के लोकसभा चुनाव में पहली बार ईवीएम मशीन पर सवाल खड़े किए गए. इस दौरान भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार लालकृष्ण आडवाणी और तत्कालीन जनता पार्टी के अध्यक्ष सुब्रमण्यम स्वामी ने ईवीएम के जरिए चुनावों में धांधली के आरोप लगाए थे. वहीं, अगले साल यानी 2010 में बीजेपी नेता जीवीएल नरसिम्हा राव ने भी मशीन पर सवाल खड़े किए. इस दौरान सुब्रमण्यम स्वामी सुप्रीम कोर्ट तक भी पहुंच गए थे. ईवीएम पर उठ रहे सवाल पर सुप्रीम कोर्ट ने वीवीपैट के उपयोग का भी निर्देश दिया था. मार्च 2017 में 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव के बाद 10 अप्रैल 2017 को 13 राजनीतिक दल चुनाव आयोग गए और ईवीएम पर सवाल उठाए. हालांकि, यह चलन अभी भी जारी है कई राजनीतिक दल और उनके नेता ईवीएम मशीन की जगह बैलेट पेपर से चुनाव कराने का मांग कर रहे हैं. चुनाव आयोग ने कहा है कि देश के कई हाई कोर्ट ने भी ईवीएम को भरोसेमंद ही माना है. साथ ही, ईवीएम के पक्ष में हाई कोर्टों द्वारा दिए गए कुछ फैसलों को जब सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई, तब सुप्रीम कोर्ट ने उन अपीलों को खारिज कर दिया.

(रिपोर्ट:- सुनीत साना)

(सोर्स:- जनसत्ता)

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