स्थापना के तैतीस साल में तैतीस उपलब्धि भी संग्रहीत करने में असफल है बीएनएमयू - मधेपुरा खबर Madhepura Khabar

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9 जनवरी 2025

स्थापना के तैतीस साल में तैतीस उपलब्धि भी संग्रहीत करने में असफल है बीएनएमयू

डेस्क: मधेपुरा की पहचान का अहम हिस्सा भूपेंद्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय आज अपनी स्थापना का तैतीस साल पूरा कर रहा है. 10 जनवरी 1992 को जब लंबे संघर्ष और प्रयास के बाद मधेपुरा में प्रखर समाजवादी चिंतक भूपेंद्र नारायण मंडल के नाम पर भूपेंद्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय की स्थापना हुई तो यह उम्मीद जगी कि यह इस क्षेत्र में उच्च शिक्षा का केंद्र ही नहीं बनेगा बल्कि क्षेत्र को भी नई पहचान देगा, लेकिन दुखद है कि स्थापना काल में सात जिलों में फैले होने में भी ऐसी कोई उपलब्धि की श्रृंखला नहीं बन स्की. आज जब विश्वविद्यालय मात्र तीन जिलों में सिमट गया है तब हालात और बद से बदतर होने लगी है कभी कुलपति के जेल जाने, कोर्ट में कुलपति को फटकार लगाने, दीक्षांत में कुलपति और राज्यपाल का विरोध, सीनेट में राज्यपाल के सामने कुलपति द्वारा झूठी जानकारी, बैठकों, आंदोलनों में मार पीट, हाथापाई में कुलपति पर हमला करने जैसी घटनाओं से शैक्षणिक परिसर पर सवाल ही नहीं उठा बल्कि बीएनएमयू शर्मसार भी हुई. इसका कोई एक कारण नहीं है प्रशासनिक कुव्यवस्था जहां मूल कारण है वहीं दूरगामी सोच संकल्प का अभाव को इंकार नहीं कर सकते. स्थानीय जनप्रतिनिधियों और समाजसेवियों की पहल तो मानों नगण्य ही रहती है. यह कहना गलत न होगा कि राजनीतिक रूप से समृद्ध रहा यह क्षेत्र भूपेंद्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय के विकास में राजनीतिक लाभ देने में पिछड़ा रहा. 
तीन दशक से अधिक के सफर में मूलभूत सुविधाएं व माहौल नहीं हुआ नसीब

तैतीस साल का भूपेंद्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय समय पर नामांकन, परीक्षा व परिणाम देना तो दूर लगातार छात्रों की मांग पर तैतीस विषयों में व्यवस्थित पढ़ाई भी शुरू नहीं कर सका. परिसर में शुरू हुए शिक्षाशास्त्र व बिलिस एमलिस में आज भी शिक्षक कर्मचारियों की घोर कमी है जिसका खामियाजा पूरा फीस जमा कर भी छात्र भुगत रहे हैं।शुद्ध पेयजल, शौचालय, कैंटीन जैसी प्राथमिक व्यवस्था के भी लाले पड़े रहते हैं. कबाड़ बन रहा कैंटीन, शौचालय के टूटे दरवाजे, हेल्थ सेंटर पर लटका ताला, शुद्ध पेयजल के नाम पर गंदगी का अंबार खुद ही अपनी दुर्दशा को बयां करती है. स्थापना काल से अपने खून पसीने से सींचने वाले कर्मचारियों के साथ न्याय नहीं कर पाना अपने आप में दुखद है।कोर्स पूरा कर चुके छात्र व सेवानिवृत हुए शिक्षक व कर्मचारियों का विश्वविद्यालय दौड़ते दौड़ते हाल बेहाल रहता है. इनसे जुड़ाव को बढ़ावा देने उठा एल्युमिनी तो बहुत दूर की बात है. 

तीन दशक बाद भी बीएनएमयू को पहले पीठ, सम्मान, पत्रिका, स्कॉलरशिप का इंतजार 

10 जनवरी 1992 को पैदा हुआ भूपेंद्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय बेशक 33 साल का युवा विश्वविद्यालय बन गया है लेकिन उपलब्धि बचपन सी भी नजर नहीं आती. स्थापना के तीन दशक होने के बाद भी शोध को बढ़ावा देने की इमानदार कोशिश नहीं हुई किसी भी महापुरुषों के नाम पर पीठ की स्थापना नहीं होना इसका जीवंत प्रमाण है. छात्र व शिक्षक के लिए विश्वविद्यालय का अपना सम्मान नहीं होना जहां कई सवालों को जन्म देता है वहीं लगातार वादे के बाद विश्वविद्यालय की अपनी पत्रिका प्रकाशित नहीं होना हास्यास्पद है. इसको लेकर प्रशानिक स्तर पर कभी कारगर कदम नहीं उठाए गए. 

नैक से मान्यता की उम्मीद पाले बीएनएमयू में गर्ल्स व ब्वॉयज हॉस्टल भी नहीं वहीं पुस्तकालय की हालत गम्भीर

विगत कई वर्षों से लगातार विश्वविद्यालय में नैक से मान्यता के नाम पर हलचल दिखाने की कोशिश की गई बैठकों का तांता लगा लेकिन हकीकत कुछ ऐसी रही कि बीएनएमयू इसके लिए प्रारम्भिक जरूरत को भी व्यवस्थित नहीं कर पाया. कई अनुदानित कॉलेजों को नैक से मिलती सफलता और सरकारी कॉलेजों का असफल होना तो अब लापरवाही और घोटाले का संकेत करने लगा है. एक दशक से पन्द्रह अगस्त व छब्बीस जनवरी को वादे के बाद भी जहां गर्ल्स हॉस्टल शुरू नहीं हुआ वहीं ब्वॉयज हॉस्टल की चर्चा कोसो दूर है गर्ल्स हॉस्टल के सामने बंधी भैंसे तो मानों व्यवस्था पर तमाचा ही है. विश्वविद्यालय के पुराने से नए परिसर में शिफ्ट केंद्रीय पुस्तकालय सिर्फ नाम का पुस्तकालय है क्योंकि यहां हिंदी और अंग्रेजी की मात्र कुछ पत्र पत्रिकाओं को छोड़ जहां अन्य विषयों के पेपर व पत्रिका नहीं आती वहीं स्तरीय व शोध परक पुस्तकों का घोर अभाव हैै. बेहतर व्यवस्था व माहौल के अभाव में पुस्तकालय कभी छात्र छात्राओं को जोड़ने न बड़ा केंद्र नहीं बन सका. 

महापुरुषों के नाम पर बने स्थल बन रहे मजाक

भूपेंद्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय में महापुरुषों के नाम पर बने स्थल आदरणीय की जगह उपेक्षा और मजाक का केंद्र बनता जा रहा है. सर्वाधिक दुर्दशा तो भूपेंद्र बाबू प्रतिमा स्थल की ही है जयंती, पुण्यतिथि के बाद कभी साफ सफाई का ध्यान ही नहीं दिया जाता. विगत कुछ वर्षों में आलम यह है कि विश्वविद्यालय के मुख्य कार्यक्रमों में भी प्रतिमा स्थल की उपेक्षा कर दी जाती है दीक्षांत और सीनेट बैठकों में माल्यार्पण तक की परम्परा भुलाई जा रही है. आडिटोरियम के सामने बना शहीद चूल्हाय पार्क में जहां साफ सफाई, व्यवस्था नहीं है वहीं मुख्य द्वार से सटे और गेस्ट हाउस के सामने स्थित कीर्ति पार्क में साज सज्जा की जगह फसल लगा दी गई हैं. 

सेमिनार और संकल्प हमेशा रहे सवालों में

विगत कुछ वर्षों में भूपेंद्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय में राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय सेमिनारों की बाढ़ सी आई. शिक्षा के परिसर के लिए यह सुखद है लेकिन चिंतनीय यह है कि इन सेमिनारों के राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय मानकों की जब बात उठती है तो संतोषजनक जवाब नहीं मिल पाता।एक चर्चित आरटीआई एक्टिविस्ट की माने तो उनके द्वारा इसी संबंध में दो साल पहले ही मांगी गई जानकारी का आज तक जवाब भी नहीं मिलाा. विश्वविद्यालय से जुड़े कर्मचारी और पदाधिकारी कहते नजर आते हैं कि होगा तब न सूची उपलब्ध होगी. वहीं विश्वविद्यालय के 2017 में 25 साल पूरा होने पर नए परिसर के सामने करोड़ों की लागत से जुबली कॉम्प्लेक्स बनाने की घोषणा तो मानों धूल ही फांक रही. आधुनिक ट्रैक तो नहीं बना लेकिन यह मैदान चारागाह और अवांछित लोगों का अड्डा बन गया है. 

तैंतीसवें स्थापना दिवस पर संकल्प तैयार करने की जरूरत कि बीएनएमयू रहेगा तो हम रहेंगे

अगर शैक्षणिक माहौल बनाने व नैक से मान्यता के नाम पर इमानदार पहल नहीं हुई तो और विश्वविद्यालय के लिए निर्धारित मानकों के आधार पर काम नहीं हुआ तो यह विश्वविद्यालय यूजीसी से किसी भी प्रकार का अनुदान पाने का हकदार ही नहीं रहेगा बल्कि इसकी हालत उस सांप की तरह हो जाएगी जो अपने ही अंडे को भोजन बनाने को विवश होगा. भूपेंद्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय इस क्षेत्र की वो प्रकाश पुंज है जिसकी रौशनी में विकास की कई किरणों को निखरना है इसके लिए जरूरी है कि चाटुकारों को सेट करने की जगह योग्य लोगों को तरजीह मिले और जो निर्णय,संकल्प लिए जाएं वो जमीन पर भी उतरे साथ ही यह संकल्प तैयार हो कि बीएनएमयू रहेगा तो हम रहेंगे.

(रिपोर्ट:- ईमेल)

पब्लिसिटी के लिए नहीं पब्लिक के लिए काम करना ही पत्रकारिता है....

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