बिहार में एक अरसे से शिक्षा के नाम पर केवल ठगी की जा रही है. हाँ सौ प्रतिशत ऐसा नहीं है पर जितना भी है वह छात्रों के हित में बिलकुल नहीं है. पिछले दिनों बीएनएमयू में हुए अनशन का भी मुख्य उद्देश्य यही था की शिक्ष्ण संस्थान व्यापार की निति न अपनाए. जहां छात्र आते हैं उस स्थान को शिक्षा का मंदिर कहा जाता है और मंदिर में व्यापार नहीं होता. पर यहाँ हर जगह छात्रों को केवल निराशा ही हाथ लगती है. होन-हार छात्र व्यापर की दौड़ में शामिल नहीं होने की वजह से दर-दर भटकते फिरते हैं और तब ऐसे में छात्रों की मदद को आगे आते हैं ये छात्र संगठन के प्रतिनिधि जो इनकी आवाज को बढ़ावा देते हैं. इसी सिलसिले में एनएसयूआई के प्रदेश महासचिव मनीष कुमार से की गयी एक बातचित में उनके द्वारा कही गयी बातों के कुछ अंश:- कहा जाता रहा है कि छात्र देश के कर्णधार होते है यह अब भी कहा जाता है लेकिन बदले हुए स्वर मे. क्योंकि आज कोई भी देश के कर्णधार तभी है जब तक कि वह सत्ता और कॉर्पोरेट की खुली लूट पर चुप्पी साधकर बैठा रहे. आज आदर्श छात्र का मतलब सवाल खड़ा करना नहीं, बल्कि चुपचाप अनुचर बनते जाना है. संवैधानिक मूल्यों का हनन, सामाजिक आर्थिक लैंगिक असमानता, जातीय भेदभाव, सत्ता और काॅरर्पोरेट की लूट और बढते महगाई के खिलाफ सड़क पर उतरने वाले छात्र, स्कॉलरशिप को लेकर धरना - प्रदर्शन करने वाले छात्र, विश्वविद्यालय मे शैक्षणिक और आर्थिक अराजकता के खिलाफ आंदोलन करने वाले छात्र आदर्श छात्र नहीं कहलाते. इन्हे तुरंत सीख दे दी जाती है - 'पढ़ाई करो, राजनीति नहीं ' छात्रो को राजनीति नही करनी चाहिए, 'राजनीति की बात करने वाले छात्र नहीं हो सकते' लेकिन, सवाल यह है कि क्या छात्र जीवन को प्रभावित करनेवाला तंत्र या संपूर्ण शिक्षा तंत्र राजनीति से विछिन्न है ? क्या लोकतंत्र मे किसी भी समुदाय को अपना राजनीतिक पक्ष रखने का अधिकार नहीं है ? हम मान रहे कि कैरियर छात्रों के जीवन से जुड़ा अहम सवाल है, लेकिन कैरियर हासिल कर आत्मनिष्ठ हो जाने से देश और समाज का भविष्य संवरनेवाला नहीं है. छात्रो को देश, समाज और उससे जुड़ी हुई सभी प्रक्रियाओं पर सजग होकर नजर रखने कि जरूरत है क्योंकि उसका सीधा संबंध उनके जीवन और कैरियर से भी है. एक लोकतांत्रिक देश में नीति -निर्धारण की प्रक्रिया मे छात्रों को शामिल होना है और यह छात्र राजनीति द्वारा ही संभव है. छात्रों को देश और समाज के हित के लिए संघर्ष के साथ गंभीरता से जुड़ना चाहिए क्योंकि जनपक्षधर होना ही सही तौर पर देश का कर्णधार है.
(रिपोर्ट : मधेपुरा :- गरिमा उर्विशा)