बता दो सब को जो मैंने किया. वह फरेब नहीं, झूठ है
ऎ आंसू थोड़ा ठहर जा.
इतनी भी पलकें न मिला,
जो मैंने किया वह फरेब नहीं झूठ नहीं. ऐ मुसाफ़िर हमने तो बस तुम्हें मंजिल समझा,
जो तुमने किया वह फरेब है झूठ है?
ऐ मुसाफिर तुम्हारा आंसू निकला,
मेरे आंसुओं का धार निकला फरेब है, झूठ है या कुछ और.
थोड़ा साथ और रह लेते,
थोड़ा फरेब हीं सही थोड़ा और निभा लेते.
(कल्पना:- सुनीत साना)