मधेपुरा: भारत विश्व की सबसे पुरानी सभ्यताओं में से एक है. जिसकी बहुरंगी विविधता और समृद्ध सांस्कृतिक विरासत है. भारतीय जन जीवन में त्योहारों, उत्सव का आदिकाल से ही काफी महत्व रहा है. यहां मनाए जाने वाले सभी त्योहार मानवीय गुणों को सहेजते हुए लोगों में प्रेम एकता व सद्भावना को बढ़ाने का संदेश देता हैं.
त्योहार हमारी संवेदना और परंपराओं को जीवंत रूप प्रदान करता है या इसे ही हम आधुनिक शब्दों में परिवार और समाज को रिफ्रेश करने वाला 'डाटा' नाम दे सकते हैंं. त्योहार को मनाना या यूं कहे तो बार-बार मनाना हमें अच्छा लगता है क्योंकि अनोखी रंग समेटे त्योहार हमारे जीवन में उमंग और उत्साह की नई लहरों को जन्म देता है. परन्तु धीरे-धीरे त्योहारो के बदलते परिवेश में युवा पीढ़ी इसकी महत्ता से अनभिज्ञ होती जा रही है.
क्योकि मैं और हमारा रहवास मिथिला क्षेत्र में होने के कारण मैं यहां के सभी स्थानीय पर्व त्यौहार से काफी हद तक वाकिफ हूं इसलिए सिर्फ मिथिला क्षेत्र की बात करूंगा. यहां अर्थात मिथिला परीक्षेत्रों में अब पर्व, त्यौहार सिर्फ धार्मिक अनुष्ठान तक ही सीमित रह गया हैै. पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही पर्व त्यौहार की परंपरा अब लुप्त होती नजर आ रही है. विलुप्त हो रहे पर्व त्यौहार की श्रेणी दिन-ब-दिन बढ़ता ही जा रहा है. यहां के अद्भुत संस्कृति का क्षरण होता जा रहा है. यहां मनाए जाने वाले विभिन्न पर्व त्यौहार में भजन और लोकगीत की जगह अश्लील और भद्दे गाने बड़े-बड़े साउंड और लाउडस्पीकर पर बड़े ही ठाट के साथ बजाया जाता है. यहां विभिन्न पूजा जैसे:- विश्वकर्मा पूजा, सरस्वती पूजा आदि में शायद ही कहीं लोक गीत या भजन सुनाई दे. इन पूजा में स्थापित प्रतिमा को आज के युवा वर्ग स्थापित तो गली-गली करते परंतु इनकी आस्था इनमें नहीं होने के कारण यह इन प्रतिमा को गंदी नाली पर स्थापित करने में भी नहीं हिचकते.हमारी पीढ़ी इस बात को भूल चुकी है कि यह पर्व त्योहार सामाजिक एकता और हमारी संस्कृति का प्रतीक हैै. हमारी पीढ़ी इन त्योहारों के प्रतिमा विसर्जन के समय दोस्त-दोस्त में मारपीट और डर पैदा करते हैं और भद्दे गानों के द्वारा समाज में अश्लीलता परोसती है. अभी हाल के दिनों में बीते पति-पत्नी के बीच सौहाद्र/ प्रेम की पर्व करवा चौथ के दिन भी कई जोड़े के बीच झगड़े, मारपीट की घटना हुई.
आगामी आने वाले चार दिवसीय दीपावली में हमारी परंपरा के अनुरूप हम सब एक समाज में रहने वाले सभी संबंधी के घर जाकर मिठाइयां खाते और खिलाते हैं या यूं कहें तो खुशियां मनाते हैं. लेकिन यह भी अब आधुनिक युग में सिर्फ व्हाट्सएप और विभिन्न प्रकार के मैसेंजर तक ही सीमित रह गया है. दीपावली के चौथे दिन भाई दूज का पर्व मनाया जाता है वह भी अब आधुनिक युग में शायद ही किसी घर में मनाया जाता हो. तो वहीं बहुत सारे लोग इस परंपरा के अनभिज्ञता के कारण दीपावली को सिर्फ 1 दिन का पर्व मानकर इससे अपना पल्ला झाड़ लेते हैं.(स्पेशल स्टोरी:- रोशन वत्स)