प्रो. अद्री ने कहा कि वर्ष 1947 में भारत का विभाजन भी कोई अनायास हुई घटना नहीं थी. इसके ऐतिहासिक कारण थे. विभाजन के लिए विशेष रूप से अंग्रेजों की फूट डालो एवं शासन करो की नीति और कुछ समूहों की स्वार्थपूर्ण अलगाववादी राजनीति जिम्मेदार रही है. कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए प्रधानाचार्य प्रो. कैलाश प्रसाद यादव ने कहा कि स्वतंत्रता मिलने के साथ ही देश को जो विभाजन रूपी दंश मिला था. लेकिन इसे भारतीय स्मृति पटल से या तो मिटाने का प्रयास किया गया या फिर उसके प्रति जान-बूझकर उदासीनता बरती गई. लेकिन भारत सरकार ने 14 अगस्त, 2021 को पहली बार विभाजन की विभीषिका को आधिकारिक रूप से राष्ट्रीय त्रासदी की मान्यता देने का निर्णय लिया. फिर प्रतिवर्ष 14 अगस्त को विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस के रूप में मनाने की शुरुआत हुई.
कार्यक्रम का संचालन करते हुए दर्शनशास्त्र विभागाध्यक्ष डॉ. सुधांशु शेखर ने बताया कि विभाजन विभिषिका स्मृति दिवस के आयोजन का मुख्य उद्देश्य इस विभीषिका की क्रूरता में दिवंगत हुई आत्माओं को श्रद्धांजलि देना और पीड़ित परिवार जनों के प्रति संवेदना व्यक्त करना हैं. इसके साथ ही यह दिन राष्ट्रीय एकता, अखंडता एवं बंधुता के लिए कार्य करने की प्रेरणा देता है. कार्यक्रम में स्वागत भाषण एनसीसी पदाधिकारी लेफ्टिनेंट गुड्डु कुमार ने दिया, जबकि मनोविज्ञान विभागाध्यक्ष डॉ. शंकर कुमार मिश्र ने की.
इस अवसर पर शोधार्थी सौरभ कुमार चौहान, प्रशिक्षक अभिषेक राय, एयूओ आदित्य रमन, यूओ अंकित कुमार, यूओ अनंत कुमार झा, यूओ नीतीश कुमार, एसजुटी वाणी कुमारी, एसजीटी खुशी कुमारी, दिव्यज्योति कुमारी, मुनचुन कुमारी, अनिसा गुप्त, नैना कुमारी, शुक्रिया कुमारी, अनु कुमारी, नीतीश कुमार, मोनू कुमार, अमृत कुमार अंशु, राहुल कुमार, राजीव कुमार, ब्रजनंदन कुमार, राजनंदन कुमार, केशव कुमार, गौरब कुमार, राजू कुमार, विमल कुमार, आलोक कुमार आदि उपस्थित थे.
(रिपोर्ट:- ईमेल)
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