ज्ञातव्य हो कि आरिफ मोहम्मद खान के राज्यपाल बनने के कई दिनों बाद तक भी विश्वविद्यालय ने वेबसाइट पर राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर को ही राज्यपाल दिखाया. बाद में मीडिया में बहुत किरकिरी होने पर सुधार किया था. वाम युवा नेता राठौर ने कहा कि विगत कुछ दीक्षांत और सीनेट बैठकों जैसी बड़े आयोजनों में साफ सफाई, रंगाई पुताई को मानों विश्वविद्यालय प्रशासन भुला ही बैठा है. लगातार किरकिरी होने के बाद भी विश्वविद्यालय प्रशासन की नींद नहीं खुलती. मुख्य द्वार के दोनों तरफ फैले गंदगी के अंबार और अतिक्रमण को हटाने के बजाय इस बार भी टेंट के कपड़े से ढक कर काम चलाया गया. वहीं रंगाई पुताई नहीं के बराबर हुई है. लोग पहले दीक्षांत समारोह में हुई तैयारी, रंगाई, पुताई मुख्य द्वार की रंगाई पुताई, दोनों तरफ के दीवारों की रंगाई ही नहीं बल्कि पूरे विश्वविद्यालय प्रशासन की सजावट को याद करते हुए कहते हैं कि दीक्षांत ऐसा होना चाहिए कि लगे कि संस्थान सच में अपने बच्चों और अतिथियों के स्वागत में समर्पित है.
राठौर ने कहा कि छठे दीक्षांत समारोह में सर्वाधिक चर्चा आयोजन की तैयारी के साथ सबसे ज्यादा दीक्षांत भाषण की श्रृंगार कही जाने वाली दीक्षा भाषण को लेकर रही यह घोर आश्चर्य का विषय रहा कि छठे दीक्षांत समारोह में दीक्षा भाषण की चर्चा कहीं नहीं हुई जबकि हर आयोजन में यह सर्वोपरी रहा है. इसके लिए हर संस्थान बड़ी विद्वत हस्ती का चयन करती है लेकिन यहां तो चर्चा भी नहीं है. ज्ञातव्य हो कि भूपेंद्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय ने जब पहले दीक्षांत समारोह की तैयारी की थी तब प्रखर विदुषी राजनीतिज्ञ तत्कालीन दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को दीक्षा भाषण के लिए बुलाया था. यह बात अलग है कि बाद में कतिपय कारणवश दीक्षांत स्थगित हो गया था. जिस बिंदु पर विश्वविद्यालय को सर्वाधिक गंभीर होना था उसी बिंदु को नेपथ्य में डाल देना चिंताजनक है ऐसा लगता है छात्र छात्राओं को महज आने डिग्री लेने और खाने के लिए बुलाया गया है. वाम युवा नेता राठौर ने कहा कि वर्तमान कुलपति के कार्यकाल में लगातार हो रही फजीहत चिंताजनक है अविलंब अगर विरोध नहीं हुआ तो विश्वविद्यालय मजाक का केंद्र बन कर रह जाएगा. पत्रकारों, छात्र संगठनों सहित अन्य स्तरों के प्रतिनिधियों को नजरअंदाज करने की साजिश सर्वाधिक दुखद रही.
(रिपोर्ट:- ईमेल)
पब्लिसिटी के लिए नहीं पब्लिक के लिए काम करना ही पत्रकारिता है....