जिन्होंने ये काम किया.
जिन्होंने मुझे खुदवा कर,
शिव गंगा मेरा नाम दिया.
मैं बहुत खुश था इतने बड़े इनाम से,
बस थोड़ा दुखी था शिव भक्तों के काम से.
जो भी मेरे पास रुकता था, वो मुझमे ही थूकता था.
जो भी करने आते शिव सम्भु की बंदना,
वो ही मुझमे फैलाते थे गंदगी.
कोई ऐसा व्यक्ति नही है
जिसे मैंने पुकारा नहीं ,
मुझे बचाओ मुझे सजाओ लेकिन किसी ने संवारा नही.
उसी प्रांगण मे आज भी मैं ठहरा हूँ,
जरा ग़ौर से देखिए मैं उसी शिव गंगा का चेहरा हूँ.
एक नम्र निवेदन है सबों से, अपने व्यवहार से मुझे सर्मिन्द न करें फैला कर फिर से वही गंदगी दोबारा मुझे गंदा न करें.
(कविता: आशीष कुमार सत्यर्थी)
(कविता: आशीष कुमार सत्यर्थी)