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रुचि स्मृति |
कटती-फटती सी जिंदगी, कभी तेज हवाओं के साथ उड़ती, कभी बेरंग से झड़ते तीतली के पंखों सी उम्र सी गुजरती, फूलों के रंग जीवन ने मानों भुला दिए, एक रात चांद की रौशनी जीवन की काली रात में चमकी, नज़रों में अटकी,
मैं जिन्दा हूं, का रंग सी हँसी फैली, खुशी के लिए लालची मन रंगों की महफिल सजाने को बेचैन सा हुआ, कभी लाल रंग की लाली जुटा रही कभी पीला होना चाह रही, कभी इन गुलाबी गालों की गुलाबी उस चेहरे की चमक से जोरे जा रही है ना,
यह जीवन की राह रंग सी, स्थायित्व का लोभ किसे नहीं, जीवन का लोभ किसे नहीं, इस इश्क के साथ जीने की चाह किसे नहीं, इस प्रेम पर होठों का हस्ताक्षर, संबंधों का रंग देने की चाह, यह सब और भी कई बातें सब जीने राह, जीने की चाह मुझे भी है ।।
(कल्पना:- रुचि स्मृति)