मधेपुरा 29/05/2018
साल 1960 में बनी फिल्म 'मुगल-ए-आजम' में बादशाह अकबर के किरदार को अमर बनाने वाले पृथ्वीराज कपूर आज भी हिंदी सिनेमा के दीवानों के जहन में बसे हुए हैं.
3 नवंबर 1906 पंजाब के लायलपुर में एक जमींदार परिवार में जन्मे पृथ्वीराज कपूर को रंगमंच का बहुत शौक था और इसलिए उन्हें थिएटर का बादशाह भी कहा जाता है. आज उनके जन्मदिन के मौके पर जानिए उनसे जुड़ी ऐसी ही कुछ दिलचस्प बातें.
साल 1960 में बनी फिल्म 'मुगल-ए-आजम' में बादशाह अकबर के किरदार को अमर बनाने वाले पृथ्वीराज कपूर आज भी हिंदी सिनेमा के दीवानों के जहन में बसे हुए हैं.
3 नवंबर 1906 पंजाब के लायलपुर में एक जमींदार परिवार में जन्मे पृथ्वीराज कपूर को रंगमंच का बहुत शौक था और इसलिए उन्हें थिएटर का बादशाह भी कहा जाता है. आज उनके जन्मदिन के मौके पर जानिए उनसे जुड़ी ऐसी ही कुछ दिलचस्प बातें.
1. पृथ्वीराज की 18 साल की उम्र में शादी हो गई थी. उनकी एक्टिंग का शौक दिन पर दिन बढ़ता जा रहा था और 1928 में वह अपने तीन बच्चों को छोड़कर पेशावर से मुंबई आ गए और इम्पीरीयल फिल्म कंपनी से जुड़ गए. इस कंपनी से जुड़ने के बाद उन्होंने फिल्मों में छोटे रोल करना शुरू कर दिया. साल 1929 में पृथ्वीराज को अपनी तीसरी फिल्म 'सिनेमा गर्ल' में पहली बार लीड रोल करने का मौका मिला.
2. साल 1931 में भारत की पहली बोलती फिल्म 'आलम आरा' आई थी और इस फिल्म में पृथ्वीराज ने भी काम किया था.
3. पृथ्वीराज ने 'दो धारी तलवार', 'शेर ए पंजाब' और 'प्रिंस राजकुमार' जैसी 9 साइलेंट फिल्मों में काम किया है.
4. पृथवीराज को रंगमंच से बहुत प्यार था इसलिए वे साल 1931 में शेक्सपीयर के नाटक पेश करने वाली ग्रांट एंडरसन थिएटर कंपनी से जुड़ गए. उसके बाद साल 1944 में उन्होंने अपनी सारी जमा पूंजी पृथ्वी थिएटर की स्थापना में लगा दी.
5. अपने थिएटर की स्थापना के लिए पृथ्वी ने गमछा फैलाकर पैसे मांगे. इलाहाबाद में महाकुंभ के दौरान शो करने के बाद पृथ्वीराज खुद गेट पर खड़े होकर गमछा फैलाते थे और लोग उसमें पैसे डालते थे. इसी तरह उन्होंने अपने पृथ्वी थिएटर की शुरुआत की.
6. 'विद्यापति' (1937), 'सिकंदर' (1941), 'दहेज' (1950), 'आवारा' (1951), 'जिंदगी' (1964), 'आसमान महल' (1965), 'तीन बहूरानियां' (1968) आदि फिल्में आज भी पृथ्वीराज के अभिनय की वजह से यादगार मानी जाती हैं.
7. फिल्म 'मुगल-ए-आजम' में उन्होंने उलझे शहंशाह जलालुद्दीन अकबर के किरदार को अमर कर दिया था. इसके साथ ही उनकी फिल्म 'आवारा' आज भी उनकी बेस्ट फिल्म मानी जाती है.
8. साल 1957 में आई फिल्म 'पैसा' नामक नाटक पर उन्होंने फिल्म बनाई थी. जिसके निर्देशन के दौरान उनका वोकल कोर्ड खराब हो गया था और उनकी आवाज पहले जैसी दमदार नहीं रह गई थी. जिसके बाद उन्होंने पृथ्वी थिएटर बंद कर दिया था.
9. साल 1969 में उन्हें पद्म भूषण अवॉर्ड से सम्मानित किया गया था. साल 1972 में उनकी मृत्यु के बाद उन्हें दादा साहब फाल्के पुरस्कार से भी नवाज़ा गया था.