पटना 26/05/2018
आखर-मसि इंक और प्रभा खेतान फाउंडेशन द्वारा आयोजित और श्री सीमेंट द्वारा प्रायोजित आखर का आयोजन किया गया. इस अवसर पर मैथिली कवियत्री कामिनी जी मौजूद थी और उनसे बात करने के लिए बिहार की प्रतिष्ठित कलाकार मीनाक्षी झा बनर्जी थी. कविता पर बात करते हुए कामिनी जी ने कहा कि कविता की प्रेरणा मुझे उस समाज से मिली जहां से मैं आती हूँ, जहां महिला की हालत सबसे बदतर है लेकिन मेरी माँ ने हमेशा मुझे साहस दिया और पिता ने शक्ति. मैं अपने गांव से पहली लड़की थी जिसने घर से बाहर जाकर पढ़ाई की. उन्होंने बताया कि कविता लेखन की शुरुआत एक चुनौती के रूप में हुई.
सबसे पहले मेरे भाई ने एक कविता दिखाई तो मुझमें भी कविता लिखने की ललक जगी लेकिन सबने कहा कि कविता तुम्हारे बस की नहीं होगी इसी जिद के कारण मैंने लेखन शुरू किया. मैंने एक महीने में 5 नाटक लिखा लेकिन उस समय संग्रहित करने का इल्म नही था तो आज कोई भी उसकी मूल प्रति मेरे पास नहीं है. लेखन में अंतराल पर बात करते हुए कहा कि शादी के बाद गृहस्थ जीवन में थोड़ा व्यस्त हो गयी और इस अंतराल में मैंने 2 बच्चों को जन्म दिया. ये किसी कविता रचना से कम नहीं था मेरे लिए. फिर उसके बाद एक मैथिली कविता संग्रह "खण्ड खण्ड में बटैत स्त्री" में उन्होंने स्त्री की वर्तमान दुर्दशा को मार्मिक रूप से चित्रित किया है. साथ हीं उसमें एक मध्यवर्गीय परिवार की उहापोह और परिवार की चिंता को भी खूब स्थान दिया गया. स्त्री विमर्श पर खूब मुखर होकर उन्होंने कहा कि आज भी समाज में स्त्री को पुरुषों के बराबर जगह नहीं मिली है.
इसपर उदाहरण देते हुए कहा कि आज भी माना जाता है कि कोई पुरुष हीं मुखाग्नि दे सकता है महिला नहीं. इसीलिए इस कारण एक हीं परिवार में एक लड़के की लालसा में कई लड़कियां पैदा की जाती हैं. उन्होंने अपने कविता के बारे में कहा कि ये सही है कि इसके बिम्ब सपाट होते हैं. कथात्मक शैली में हीं होते हैं लेकिन मेरा मानना है कि कवयित्री को काव्य शैली के चयन की स्वतन्त्रता होनी चाहिए. इस मौके पर पद्मश्री उषा किरण खान, हृषिकेश सुलभ, प्रो. वीरेंद्र झा, धीरेन्द्र कुमार झा, राम चैतन्य धीरज, निवेदिता झा,उषा झा, जय प्रकाश विनीत कुमार, आराधना प्रधान आदि लोग मौजूद थे.
आखर-मसि इंक और प्रभा खेतान फाउंडेशन द्वारा आयोजित और श्री सीमेंट द्वारा प्रायोजित आखर का आयोजन किया गया. इस अवसर पर मैथिली कवियत्री कामिनी जी मौजूद थी और उनसे बात करने के लिए बिहार की प्रतिष्ठित कलाकार मीनाक्षी झा बनर्जी थी. कविता पर बात करते हुए कामिनी जी ने कहा कि कविता की प्रेरणा मुझे उस समाज से मिली जहां से मैं आती हूँ, जहां महिला की हालत सबसे बदतर है लेकिन मेरी माँ ने हमेशा मुझे साहस दिया और पिता ने शक्ति. मैं अपने गांव से पहली लड़की थी जिसने घर से बाहर जाकर पढ़ाई की. उन्होंने बताया कि कविता लेखन की शुरुआत एक चुनौती के रूप में हुई.
सबसे पहले मेरे भाई ने एक कविता दिखाई तो मुझमें भी कविता लिखने की ललक जगी लेकिन सबने कहा कि कविता तुम्हारे बस की नहीं होगी इसी जिद के कारण मैंने लेखन शुरू किया. मैंने एक महीने में 5 नाटक लिखा लेकिन उस समय संग्रहित करने का इल्म नही था तो आज कोई भी उसकी मूल प्रति मेरे पास नहीं है. लेखन में अंतराल पर बात करते हुए कहा कि शादी के बाद गृहस्थ जीवन में थोड़ा व्यस्त हो गयी और इस अंतराल में मैंने 2 बच्चों को जन्म दिया. ये किसी कविता रचना से कम नहीं था मेरे लिए. फिर उसके बाद एक मैथिली कविता संग्रह "खण्ड खण्ड में बटैत स्त्री" में उन्होंने स्त्री की वर्तमान दुर्दशा को मार्मिक रूप से चित्रित किया है. साथ हीं उसमें एक मध्यवर्गीय परिवार की उहापोह और परिवार की चिंता को भी खूब स्थान दिया गया. स्त्री विमर्श पर खूब मुखर होकर उन्होंने कहा कि आज भी समाज में स्त्री को पुरुषों के बराबर जगह नहीं मिली है.
इसपर उदाहरण देते हुए कहा कि आज भी माना जाता है कि कोई पुरुष हीं मुखाग्नि दे सकता है महिला नहीं. इसीलिए इस कारण एक हीं परिवार में एक लड़के की लालसा में कई लड़कियां पैदा की जाती हैं. उन्होंने अपने कविता के बारे में कहा कि ये सही है कि इसके बिम्ब सपाट होते हैं. कथात्मक शैली में हीं होते हैं लेकिन मेरा मानना है कि कवयित्री को काव्य शैली के चयन की स्वतन्त्रता होनी चाहिए. इस मौके पर पद्मश्री उषा किरण खान, हृषिकेश सुलभ, प्रो. वीरेंद्र झा, धीरेन्द्र कुमार झा, राम चैतन्य धीरज, निवेदिता झा,उषा झा, जय प्रकाश विनीत कुमार, आराधना प्रधान आदि लोग मौजूद थे.