सरकार की प्राथमिकता में हो बाढ़ नियन्त्रण: डॉ. दिनेश कुमार मिश्र - मधेपुरा खबर Madhepura Khabar

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3 मई 2018

सरकार की प्राथमिकता में हो बाढ़ नियन्त्रण: डॉ. दिनेश कुमार मिश्र

पटना 03/05/2018
गुरुवार को पटना के विकास प्रबंधन संस्थान, बिहार सरकार और एक्शन मीडिया के संयुक्त तत्वावधान में बिहार डायलॉग का आयोजन किया गया. जिसमें "बिहार में बाढ़ और सुखाड़" पर एक सार्थक संवाद आयोजित की गई.
                 कार्यक्रम को संबोधित करते हुए प्रसिद्ध बाढ़ विशेषज्ञ डॉ. दिनेश कुमार मिश्र ने कहा कि 1984 को नवहट्टा में बांध टूटा और वहाँ मुझे एक इंजिनियर की तरह भेजा गया. बिहार में बाढ़ कि समस्या से निजात पाने के लिए नेपाल से 1937 से बात चल रही है, जो हमारी प्राथमिकता को दर्शाता है. अनुमानतः 2060 तक गंगा घाटी में पीने के पानी की समस्या शुरु हो जायेगी.
                        हम आज अर्ली वार्निंग सिस्टम की बात कर रहे है उसपर 1966 में सबसे पहले महावीर रावत ने विधान सभा में पूछा था. हम अब तक इसे नहीं विकसित कर पाये हैं. बाँध टूटने के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि कई बार तटबंधों का कटाव लोग स्वयं करते हैं ताकि बाढ़ कि विभिषिका और उसके द्वारा होने वाले जान और माल का नुकसान कम हो सके. उन्होंने कहा कि हम योजनाएं बनाने में तो सबसे अव्वल हैं लेकिन उनको ज़मीन पर उतारने में काफी नीचले स्तर पर हैं.
                             तालाबों के संरक्षण में लगे प्रसिद्ध समाजसेवी नारायणजी चौधरी ने कहा कि तालाबों का सम्बन्ध हमारे जीवन, हमारी संस्कृति से है. फ्रांसिस बुकानन जिन्होंने पूर्णिया गजेटियर तैयार किया था के एक सर्वे  के अनुसार बलुहा घाट में 1807 में 122 प्रकार की मछलियों की प्रजाति पाई जाती थी जो अब मुश्किल से 50 प्रकार की हीं रह गई हैं. तालाब को जलीय जीव और जलीय विविधता के मदद से मेंटेन कर सकते हैं. दरभंगा के दिग्ग्धी और हरारी नामक तालाबों का उदाहरण देते हुए चौधरी जी ने कहा कि इनका इतिहास 900 से 1000 साल पुराना है. हमें जरूरत है अपने इस समृद्घ विरासत को फिर से जीवंत करने की.
                                           नई व्यवस्था में तालाबों का मालिकाना हक सरकार का है. जिसकी बंदोबस्ती की जाती है. कुछ नए बदलाव कर ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए जहां तालाबों के प्रबंधन की जिम्मेदारी गांव की हो तब उनके, सरंक्षण के साथ हीं उनका प्रबंधन भी आसान होगा.
                                    वार्ता का समन्वयन विकास प्रबंधन संस्थान के प्रोफेसर सुर्यभूषण ने किया. उन्होंने कहा कि विकास की बात बिल्कुल एकांगी नहीं होनी चाहिए, बल्कि उसे समग्र होना चाहिए. उन्होंने वक्ताओं का धन्यवाद देते हुए कहा कि ऐसी वार्ताएं और निरंतरता और अंतराल से होनी चाहिए.

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