मधेपुरा
भारत में पांडुलिपियों का खजाना है. यहाँ करीब एक करोड़ पांडुलिपियाँ हैं. इसमें से 43 लाख पांडुलिपियों को राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन ने सूचीबद्ध कर लिया है. शेष 57 लाख पांडुलिपियों को मार्च 2020 तक सूचीबद्ध कर लिया जाएगा. यह बात राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन के निदेशक प्रतापानंद झा ने कही.
वे सोमवार को केन्द्रीय पुस्तकालय, बीएनएमयू के तत्वावधान में 'पांडुलिपि विज्ञान एवं लिपि विज्ञान' पर आयोजित 21 दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला में व्याख्यान दे रहे थे. यह कार्यशाला राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन, नई दिल्ली द्वारा प्रायोजित है. निदेशक ने बताया कि भारतीय ज्ञान परंपरा काफी समृद्ध रही है. हमारी पांच हजार वर्षों से अधिक पुरानी वाचिक परंपरा है.
करीब 23 सौ वर्षों की लिखित परंपरा है. सम्राट अशोक के शिलालेख मिलते हैं. हमें अपनी ज्ञान परंपरा का संरक्षण एवं संवर्धन करना है. राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन ने अब तक तीन लाख पांडुलिपियों का डिजिटाइजेशन किया है. मार्च 2020 तक दस लाख पांडुलिपियां आॅनलाइन एसेस हेतु उपलब्ध होंगी. इसमें से पांच लाख एनएनएम की और पांच लाख दूसरे संस्थानों की होंगी.
उन्होंने कहा कि पांडुलिपियों के संरक्षण के साथ-साथ यह भी जरूरी है कि हम उसके साहित्य का समुचित उपयोग करें। सवाल यह भी है कि हम पांडुलिपियों के भंडार से अपने काम की चीजें कैसे खोजें ? इस दिशा में भी प्रयास हो रहा है. श्री झा ने कहा कि पांडुलिपियों के संरक्षण के लिए हमें निरंतर सतर्क रहने की जरूरत है. तकनीकी लगातार परिवर्तित होते रहती है.
हमें अप टू डेट रहना होगा. दूसरे वक्ता बीएचयू, वाराणसी के उप पुस्तकालयाध्यक्ष डी. के. सिंह ने कहा कि हमें पांडुलिपियों के संरक्षण के साथ-साथ उसके उपयोग पर भी ध्यान देना होगा. पांडुलिपियों को अलमीरे में बंद कर उसे अगरबत्ती दिखना निरर्थक है. उन्होंने कहा कि आज डिजिटाइजेशन पर करोड़ों खर्च हो रहा है. यह डिजिटाइजेशन संरक्षण के साथ-साथ उपयोग के लिए भी हो. उन्होंने कहा कि आज सूचनाओं का बाढ़ है.
लेकिन तीन प्रतिशत आबादी ही 97 प्रतिशत सूचनाओं का उपयोग कर रही है. हमें इसमें उपयोगी सूचना को संरक्षित करना हैै. जो भी मिला, उसे बचा लेने की प्रवृत्ति ठीक नहीं है. श्री सिंह ने कहा कि पांडुलिपियों में निहित ज्ञान महत्वपूर्ण है. पांडुलिपियों में निहित ज्ञान का जन कल्याण में उपयोग होना चाहिए. हम परमार्थ के लिए काम करें.
इस अवसर पर पुस्तकालय एवं सूचना विज्ञान विभाग, तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय, भागलपुर के पूर्व निदेशक डाॅ. बसंत कुमार चौधरी, केन्द्रीय पुस्तकालय के प्रोफेसर इंचार्ज डाॅ. अशोक कुमार, पीआरओ डॉ. सुधांशु शेखर, इवेंट मैनेजर पृथ्वीराज यदुवंशी, डाॅ. सरोज कुमार, डाॅ. अरूण कुमार सिंह, सिद्दु कुमार, सोनू कुमार सिंह, अंशु आनंद, रंजन कुमार मिश्र, कपिलदेव यादव, पवन कुमार दास, मो. आफताब आलम, मृत्यंजय कुमार सिंह, संदीप कुमार, मो. फसीउद्दीन सहित विभिन्न विश्वविद्यालयों के प्रतिभागी उपस्थित थे.
(रिपोर्ट:- ईमेल)
भारत में पांडुलिपियों का खजाना है. यहाँ करीब एक करोड़ पांडुलिपियाँ हैं. इसमें से 43 लाख पांडुलिपियों को राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन ने सूचीबद्ध कर लिया है. शेष 57 लाख पांडुलिपियों को मार्च 2020 तक सूचीबद्ध कर लिया जाएगा. यह बात राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन के निदेशक प्रतापानंद झा ने कही.
वे सोमवार को केन्द्रीय पुस्तकालय, बीएनएमयू के तत्वावधान में 'पांडुलिपि विज्ञान एवं लिपि विज्ञान' पर आयोजित 21 दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला में व्याख्यान दे रहे थे. यह कार्यशाला राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन, नई दिल्ली द्वारा प्रायोजित है. निदेशक ने बताया कि भारतीय ज्ञान परंपरा काफी समृद्ध रही है. हमारी पांच हजार वर्षों से अधिक पुरानी वाचिक परंपरा है.
करीब 23 सौ वर्षों की लिखित परंपरा है. सम्राट अशोक के शिलालेख मिलते हैं. हमें अपनी ज्ञान परंपरा का संरक्षण एवं संवर्धन करना है. राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन ने अब तक तीन लाख पांडुलिपियों का डिजिटाइजेशन किया है. मार्च 2020 तक दस लाख पांडुलिपियां आॅनलाइन एसेस हेतु उपलब्ध होंगी. इसमें से पांच लाख एनएनएम की और पांच लाख दूसरे संस्थानों की होंगी.
उन्होंने कहा कि पांडुलिपियों के संरक्षण के साथ-साथ यह भी जरूरी है कि हम उसके साहित्य का समुचित उपयोग करें। सवाल यह भी है कि हम पांडुलिपियों के भंडार से अपने काम की चीजें कैसे खोजें ? इस दिशा में भी प्रयास हो रहा है. श्री झा ने कहा कि पांडुलिपियों के संरक्षण के लिए हमें निरंतर सतर्क रहने की जरूरत है. तकनीकी लगातार परिवर्तित होते रहती है.
हमें अप टू डेट रहना होगा. दूसरे वक्ता बीएचयू, वाराणसी के उप पुस्तकालयाध्यक्ष डी. के. सिंह ने कहा कि हमें पांडुलिपियों के संरक्षण के साथ-साथ उसके उपयोग पर भी ध्यान देना होगा. पांडुलिपियों को अलमीरे में बंद कर उसे अगरबत्ती दिखना निरर्थक है. उन्होंने कहा कि आज डिजिटाइजेशन पर करोड़ों खर्च हो रहा है. यह डिजिटाइजेशन संरक्षण के साथ-साथ उपयोग के लिए भी हो. उन्होंने कहा कि आज सूचनाओं का बाढ़ है.
लेकिन तीन प्रतिशत आबादी ही 97 प्रतिशत सूचनाओं का उपयोग कर रही है. हमें इसमें उपयोगी सूचना को संरक्षित करना हैै. जो भी मिला, उसे बचा लेने की प्रवृत्ति ठीक नहीं है. श्री सिंह ने कहा कि पांडुलिपियों में निहित ज्ञान महत्वपूर्ण है. पांडुलिपियों में निहित ज्ञान का जन कल्याण में उपयोग होना चाहिए. हम परमार्थ के लिए काम करें.
इस अवसर पर पुस्तकालय एवं सूचना विज्ञान विभाग, तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय, भागलपुर के पूर्व निदेशक डाॅ. बसंत कुमार चौधरी, केन्द्रीय पुस्तकालय के प्रोफेसर इंचार्ज डाॅ. अशोक कुमार, पीआरओ डॉ. सुधांशु शेखर, इवेंट मैनेजर पृथ्वीराज यदुवंशी, डाॅ. सरोज कुमार, डाॅ. अरूण कुमार सिंह, सिद्दु कुमार, सोनू कुमार सिंह, अंशु आनंद, रंजन कुमार मिश्र, कपिलदेव यादव, पवन कुमार दास, मो. आफताब आलम, मृत्यंजय कुमार सिंह, संदीप कुमार, मो. फसीउद्दीन सहित विभिन्न विश्वविद्यालयों के प्रतिभागी उपस्थित थे.
(रिपोर्ट:- ईमेल)