जॉन कैली के पहल पर अमेरिका के कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय से की पीएचडी
कॉलेज के प्राचार्य की पहल पर जब कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जॉन कैरी ने इनकी प्रतिभा को देखा तो इनको अमेरिका ले गए जहां विश्व के नामचीन विश्वविद्यालयों में शुमार कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय से इन्होंने पीएचडी की और वहीं वाशिंगटन विश्वविद्यालय में प्रोफेसर के रूप में काम किया लेकिन वतन भारत से मोहब्बत कुछ ऐसी थी कि उनका मन वहां नहीं लग पा रहा आखिरकार 1972 में हमेशा के लिए भारत लौट आए और आईआईटी कानपुर में लेक्चरर की सेवा देनी शुरू की. नासा में भी उन्होंने काम किया था.
1973 में वैवाहिक बन्धन में बंधे अगले ही साल 1974 में दौरा पड़ा फिर रांची में इलाज शुरू हुआ. 1989 में अचानक गायब हुए फिर अत्यन्त दयनीय हालात में 1993 में मिले. इलाज जारी रहा. इसी बीच 1997 में खतरनाक मानसिक बीमारी सिजोफ्रेनिया ने उन्हें जकड़ लिया जिसका परिणाम यह रहा कि गणित की दुनिया का चमकता सितारा गुमनामी की जिंदगी जीने को विवश हो गया. उनकी प्रतिभा इस दर्जे की थी कि विश्व के अनगिनत नामचीन विश्वविद्यालय उन्हें अपने यहां सेवा देने का आग्रह करते रहे. बर्कले यूनिवर्सिटी में वो तो उन्हें जीनियसो का जीनियस के रूप में ख्याति प्राप्त थी. आइंस्टीन और गॉस के सिद्धांतों को उन्होंने तार्किक चुनौती देकर सबको हैरान कर दिया था.
2014 में बने थे बीएनएमयू के विजिटिंग प्रोफेसर
इसी बीच विभिन्न सामाजिक संगठनों व मीडिया द्वारा उनके इलाज व उनकी प्रतिभा के सदुपयोग को लेकर पहल करने की मांग विभिन्न स्तरों पर उठती रही जिसपर संज्ञान लेते हुए तत्कालीन सांसद व बीएनएमयू की सीनेट सदस्य रंजीत रंजन ने विभिन्न स्तरों पर पहल शुरू की परिणाम स्वरूप गुमनामी की जिंदगी जी रहे वशिष्ठ नारायण सिंह को 2013- 14 में बीएनएमयू का विजिटिंग प्रोफेसर बनाया गया. विश्वविद्यालय द्वारा तय टीम ने उनके आवास पर जाकर बड़े सम्मान के साथ बीएनएमयू लाने का काम किया उस समय का आलम यह था कि बीएनएमयू परिसर में पदाधिकारी, गणमान्य हस्ती,छात्र प्रतिनिधि, छात्र आदि देर शाम होने के बाद भी उनके स्वागत में गर्मजोशी से परिसर में बने रहे।मुख्यालय आते ही गर्मजोशी से उनका स्वागत किया गया और अतिथिशाला में ठहराया गया जहां हर कोई उनको देखने व मिलने को आतुर नजर आ रहा था. चार्ज लेने के बाद परिसर में ही छात्रों व शिक्षकों से उन्होंने संवाद भी किया. उस समय बीएनएमयू की फिजा ही बदली बदली सी थी. विश्वविद्यालय के इस पहल की चर्चा प्रांतीय व राष्ट्रीय स्तर के मीडिया में छाई रही।उसके बाद तय किया गया कि वो घर जाएंगे फिर पूरी तैयारी से आएंगे इसी वादे इरादे के साथ उन्हें भेजा गया. लेकिन फिर उसके बाद वह दुबारा बीएनएमयू नहीं लौट सके. उनको लाने को लेकर कई बार आंदोलन हुआ.
वर्ष 2015 में हुए बीएनएमयू के ऐतिहासिक आंदोलन का मुख्य मुद्दा भी वशिष्ठ बाबू को लाने का था विश्वविद्यालय ने पहल को लेकर एक टीम भी बनाई जो कागज पर ही सिमट कर रह गई. और इस तरह से वशिष्ठ बाबू के इलाज की आर्थिक समस्या दूर होने और उनकी विलक्षण प्रतिभा से लाभ मिलने का अवसर हाथ से जाता रहा. इसके बाद पटना में उनके कुछ चाहने वालों ने उनके आवास, भोजन की व्यवस्था के साथ उनके इलाज की सकारात्मक मुहिम शुरू की जिसे कई स्तरों पर सहयोग भी मिला. अचानक उनकी तबियत बिगड़ी और उन्हें पटना मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराया गया जहां इलाज के दौरान ही उन्होंने 14 नवम्बर 2019 को उन्होंने आखिरी सांस ली. दुखद यह रहा कि बिहार के इस कोहिनूर को मौत के बाद भी कोई सुधि लेने वाला नहीं था उनकी लाश को एम्बुलेंस तक उपलब्ध नहीं हुई मीडिया में चर्चा में आने के बाद पटना जिला प्रशासन के सहयोग से व्यवस्था हो पाई।निधन के बाद राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, राज्यपाल, मुख्यमंत्री सहित कई गणमान्य हस्ती ने शोक संवेदना व्यक्त की।इस तरह से गणित का चमकता सितारा अपनी जिंदगी का आखिरी दौर गुमनामी के साथ बिता गया.
2020 में मिला पद्म श्री का सम्मान
भारत सरकार ने उनकी विलक्षण प्रतिभा और उनके योगदान को सम्मान देते हुए वर्ष 2020 के पद्म श्री सम्मान मृत्युपरांत देने की घोषणा की जो उनके परिजन ने प्राप्त किया. वशिष्ठ नारायण सिंह के प्रतिभा का कद ऐसा था कि कभी तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने यहां तक कहा था कि वशिष्ठ बाबू के इलाज हर संभव कोशिश की जाएगी. आज बेशक गणित की दुनिया का अनमोल सितारे वशिष्ठ नारायण सिंह हमारे बीच में नहीं हैं लेकिन उनकी उपलब्धि आज भी प्रांत और मुल्क के गौरवशाली अध्याय की मजबूत कड़ी है. 2019 में 14 नवंबर को दुनिया को अलविदा कहने वाले वशिष्ठ नारायण सिंह को विनम्र श्रद्धांजलि.
(रिपोर्ट:- ईमेल)
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