आत्मदाह की चेतावनी देने वाले दो शोधार्थियों के मामले में एआईवाईएफ ने जिला प्रशासन से की हस्तक्षेप की मांग - मधेपुरा खबर Madhepura Khabar

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16 फ़रवरी 2025

आत्मदाह की चेतावनी देने वाले दो शोधार्थियों के मामले में एआईवाईएफ ने जिला प्रशासन से की हस्तक्षेप की मांग

मधेपुरा: भूपेंद्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय के दो शोधार्थी अरमान अली और मौसम प्रिया द्वारा कुलपति और विश्वविद्यालय प्रशासन के तुगलकी फरमान से आजीज आ राष्ट्रपति को पत्र लिख उन्नीस फरवरी को राज्यपाल के सामने आत्मदाह की अनुमति मांगे जाने की खबर चर्चा में आने पर वाम युवा संगठन एआईवाईएफ लगातार एक्टिव है।संगठन के जिला संयोजक हर्ष वर्धन सिंह राठौर ने त्वरित संज्ञान लेते हुए कुलपति के बाद शनिवार को डीएम को पत्र लिख विश्वविद्यालय के अस्थिर माहौल पर जिला प्रशासन को अपने स्तर से हस्तक्षेप कर हालात को बिगड़ने से पहले काबू करने की अपील की है. ज्ञातव्य हो कि पूर्व में कुलपति को लिखे पत्र में वाम युवा नेता राठौर ने अविलंब मामले के निपटाते की मांग करते हुए कुलपति प्रो विमलेंदु शेखर झा से कहा था कि यह कितना दुखद है कि विश्वविद्यालय को जिन छात्रों का भाग्यविधाता बनना चाहिए वो उनके भविष्य पर ही ग्रहण लगा रहा है जो किसी भी शैक्षणिक परिसर में शुभ संकेत नहीं है. इससे छात्र मानसिक और शैक्षणिक प्रताड़ना के शिकार होते हैं. लेकिन उसके बाद भी विश्वविद्यालय ने कोई गंभीरता नहीं दिखाई. 
डीएम को लिखे पत्र में राठौर ने कहा कि भूपेंद्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय तीन दशक के बाद भी वहां नहीं पहुंच पाया जहां पहुंचना था ऐसे में सबको साथ लेकर विकास की पहल की जगह छात्रहित की मांग उठाने वाले दो छात्र नेताओं के पीएचडी कोर्स से निलंबित कर देना तानाशाही फरमान के साथ कुलपति के अड़ियल और तानाशाही सोच को दिखाता है जिसे किसी सूरत में बर्दास्त नहीं किया जा सकता. पत्र में में राठौर ने विश्वविद्यालय की वर्तमान व्यवस्था पर चिंता जताते हुए लिखा है कि जिस विश्वविद्यालय ने हमेशा छात्र संगठनों को अपना आंख कान मान सम्मान किया वहां छात्र संगठनों के साथ कुलपति का लगातार विरोधी व्यवहार अब बोझ और विश्वविद्यालय के बदनामी के साथ साथ बर्दास्त से बाहर हो रहा है. अरमान अली और मौशम प्रिया के मामले में अविलंब जिला प्रशासन हस्तक्षेप कर दोनों शोधार्थी छात्र नेताओं के साथ न्याय करे वरना यह विश्वविद्यालय कहीं दीक्षांत समारोह के आयोजन और उपलब्धियों के बजाय कहीं आंदोलन का अखाड़ा न बन जाए.
(रिपोर्ट:- ईमेल)
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