प्रेम - मधेपुरा खबर Madhepura Khabar

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10 फ़रवरी 2018

प्रेम

मधेपुरा 09/02/2018 
आग्रह है तुम्हारा कि कहूं, “मैं प्रेम में हूं”
हाँ , मैं कहना चाहती हूं, “मैं प्रेम में हूं”
तोड़ देना चाहती हूं, अभिजात्य मौन की स्वयंभू वर्जनाएं....करना चाहती हूं, सस्वर उद्घोष कि चराचर सृष्टि, नाद के इस कोलाहल में आकंठ डूब जाए... मन के मुक्ताकाश पर फहराती तुम्हारा नाम पताका दूर क्षितिज से देख सके सब... अंतस सागर में जो हिलोर उठे उस पर तुम्हारी चांदनी का प्रतिबिंब इतना स्पष्ट हो कि हर आकुल ह्रदय को उसमें अपनी छवि दिख जाए.... हां, मैं कहना चाहती हूं, “मैं प्रेम में हूं.....शैली बक्षी की इस पंक्ति से प्रेम के उस बिन्दु पर प्रकाश पड़ता है जिसका कभी सच में विकास नहीं हुआ. 
मतलब कि लड़कियों के नजरिये का. 
आज का प्रेम लड़कियों की दृष्टी का भी है, जो केवल उनको पसंद वो बेहिचक कहती हैं, बिना लागलपेट. सही भी है , हम लड़कियाँ क्यूं हर बार किसी की पसंद बने तथा उसके हिसाब से खुद को ढालें. खुद लड़के पसंद करें, उन्हें बदलने की आवश्यकता भी नहीं होगी, क्योंकि वो पहले से हीं हमारा पसंद होगा ना. प्रेम हमारा स्वाभाव है, हम प्रेम वाले हीं हैं. हमारा दिल जिसके लिए धड़कता है उसके लिए हम कुछ भी कर जाने की हिम्मत रख पाते हैं. इसमें खुद बहुत शक्ति है रिश्ते सम्भालना, एक-दूसरे की इज्जत करना हम सीख जाते हैं. ओशो कहते हैं"
आदमी के व्यक्तित्व के तीन तल हैं: 
उसका शरीर विज्ञान, उसका शरीर, उसका मनोविज्ञान, उसका मन और उसका अंतरतम या शाश्वत आत्मा. प्रेम इन तीनों तलों पर हो सकता है लेकिन उसकी गुणवत्ताएं अलग होंगी. 
कुछ उदाहरण
1.शरीर के तल पर वह मात्र कामुकता होती है. तुम भले ही उसे प्रेम कहो क्योंकि शब्द प्रेम काव्यात्म लगता है, सुंदर लगता है. लेकिन निन्यानबे प्रतिशत लोग उनके सैक्स को प्रेम कहते हैं. सैक्स जैविक है, शारीरिक है. तुम्हारी केमिस्ट्री, तुम्हारे हार्मोन, सभी भौतिक तत्व उसमें संलग्न हैं.
2.संगीतज्ञ, चित्रकार, कवि एक अलग तल पर जीता है. वह सोचता नहीं, वह महसूस करता है. और चूंकि वह हृदय में जीता है वह दूसरे व्यक्ति का हृदय महसूस कर सकताहै. सामान्यतया इसे ही प्रेम कहते हैं. यह विरल है. मैं कह रहा हूं शायद केवल एक प्रतिशत, कभी-कभार. ""
चंद पंक्तियों में कहा जाए तो
पहले प्रकार के प्रेम को सैक्स कहना चाहिए. दूसरे प्रेम को प्रेम कहना चाहिए, तीसरे प्रेम को प्रेमपूर्णता कहना चाहिए: एक गुणावत्ता, असंबोधित; न खुद अधिकार जताता है, न किसी को जताने देता है. यह प्रेमपूर्ण गुणवत्ता ऐसी मूलभूत क्रांति है कि उसकी कल्पना करना भी अति कठिन है. इन सब के अलावे भी प्रेम बहुत कुछ है, और यह सबका अपना-अपना है.  बिना मिलावट, बिना नाप का. इससे ज्यादा बहाव किसी में नहीं तो ठहराव भी किसी में नहीं. जिस रूप भजो उसी रूप में मिलेगा आपको.
(कल्पना:- रूचि स्मृति) 

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