मधेपुरा 03/02/2018
बीएनएमयू दो प्रमंडलों के अंतर्गत पड़ने वाले सात जिलों में फैला है. इसकी सीमाएँ नेपाल की तराई से लेकर बंग्लादेश की सीमा तक फैली हुई हैं.
यह कोशी अंचल, मिथिलांचल एवं सीमांचल का इलाका है. यह इलाका लगातार विभिन्न आपदाओं से पीड़ित रहा है और यह विश्वविद्यालय भी आपदाओं-विपदाओं से घिरा रहा है. लेकिन आपदाओं-विपदाओं से घबड़ाने की जरूरत नहीं है. हम अपने सत्कर्मों के बल पर आपदाओं-विपदाओं को कम कर सकते हैं.
अपने पुरुषार्थ से अपनी नियति बदल सकते हैं-अपना नया भाग्य लिख सकते हैं. यह बात बीएनएमयू के कुलपति डाॅ. अवध किशोर राय ने कही. वे शनिवार को सीनेट के 18वें वार्षिक अधिवेशन में अध्यक्षीय संबोधन प्रस्तुत कर रहे थे. कुलपति ने कहा कि यदि हौसला बुलंद हो, तो सीमित संसाधनों के बावजूद बेहतर प्रदर्शन किया जा सकता है. "मंजिलें उनको मिलती हैं, जिनके सपनों में जान होती है.
सिर्फ पंख से कुछ नहीं होता, हौसलों से उड़ान होती है."कुलपति ने कहा कि उन्होंने बीएनएमयू के समग्र विकास का, उसे राष्ट्रीय ख्याति दिलाने का सपना देखा है. उनका सपना है कि सभी गर्व से कहें कि हम बीएनएमयू के हैं, बीएनएमयू हमारा है. कुछ छोटी-मोटी बाधाएँ हैं, लेकिन आप सबों के सहयोग से हम उन्हें दूर कर लेंगे.
विध्न-बाधाओं से हमारे कदम रूकेंगे नहीं, बल्कि और भी तेज एवं मजबूती के साथ आगे बढ़ेंगे. जैसा कि श्रीराम शर्मा आचार्य ने कहा है, "निंद कहाँ उनकी आँखों में, जो धून के मतवाला हैं. गति की तृष्णा बढ़ जाती है, जब पद में पङता छाले हैं."कुलपति ने कहा कि हम सब विश्वविद्यालय के विकास में अपनी-अपनी क्षमताओं का सकारात्मक उपयोग करें और विश्वविद्यालय को अपनी सर्वोत्तम सेवा दें. हम केवल यह नहीं सोचें कि हमारे विश्व विद्यालय ने हमारे लिए क्या किया, बल्कि यह भी सोचें कि हम विश्वविद्यालय के लिए क्या कर सकते हैं.
कुलपति ने कहा कि हम इस विश्व विद्यालय के हित में जो कुछ भी कर सकते हैं, वह अविलंब करना शुरू करें. हम अंधेरे को कोसने की बजाय एक चिराग जलाएं. हम सब एक-एक चिराग जलाएंगे, तो एक दीपमाला बनेगी और अंधेरा दूर हो जाएगा और चारों ओर ज्ञान का प्रकाश फैलेगा. फिर हमारे विश्वविद्यालय के बारे में सकारात्मक धारणा बनेगी और राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हमारी नई पहचान कायम होगी. यही हमारा एकमात्र मकसद है.
बीएनएमयू की सूरत बदलनी हैं. दुष्यंत कुमार के शब्दों में, "हो गयी है पीर पर्वत सी पीघलनी चाहिए. इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए. सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं. अपनी कोशिश है कि सूरत बदलनी चाहिए."
बीएनएमयू दो प्रमंडलों के अंतर्गत पड़ने वाले सात जिलों में फैला है. इसकी सीमाएँ नेपाल की तराई से लेकर बंग्लादेश की सीमा तक फैली हुई हैं.
यह कोशी अंचल, मिथिलांचल एवं सीमांचल का इलाका है. यह इलाका लगातार विभिन्न आपदाओं से पीड़ित रहा है और यह विश्वविद्यालय भी आपदाओं-विपदाओं से घिरा रहा है. लेकिन आपदाओं-विपदाओं से घबड़ाने की जरूरत नहीं है. हम अपने सत्कर्मों के बल पर आपदाओं-विपदाओं को कम कर सकते हैं.
अपने पुरुषार्थ से अपनी नियति बदल सकते हैं-अपना नया भाग्य लिख सकते हैं. यह बात बीएनएमयू के कुलपति डाॅ. अवध किशोर राय ने कही. वे शनिवार को सीनेट के 18वें वार्षिक अधिवेशन में अध्यक्षीय संबोधन प्रस्तुत कर रहे थे. कुलपति ने कहा कि यदि हौसला बुलंद हो, तो सीमित संसाधनों के बावजूद बेहतर प्रदर्शन किया जा सकता है. "मंजिलें उनको मिलती हैं, जिनके सपनों में जान होती है.
सिर्फ पंख से कुछ नहीं होता, हौसलों से उड़ान होती है."कुलपति ने कहा कि उन्होंने बीएनएमयू के समग्र विकास का, उसे राष्ट्रीय ख्याति दिलाने का सपना देखा है. उनका सपना है कि सभी गर्व से कहें कि हम बीएनएमयू के हैं, बीएनएमयू हमारा है. कुछ छोटी-मोटी बाधाएँ हैं, लेकिन आप सबों के सहयोग से हम उन्हें दूर कर लेंगे.
विध्न-बाधाओं से हमारे कदम रूकेंगे नहीं, बल्कि और भी तेज एवं मजबूती के साथ आगे बढ़ेंगे. जैसा कि श्रीराम शर्मा आचार्य ने कहा है, "निंद कहाँ उनकी आँखों में, जो धून के मतवाला हैं. गति की तृष्णा बढ़ जाती है, जब पद में पङता छाले हैं."कुलपति ने कहा कि हम सब विश्वविद्यालय के विकास में अपनी-अपनी क्षमताओं का सकारात्मक उपयोग करें और विश्वविद्यालय को अपनी सर्वोत्तम सेवा दें. हम केवल यह नहीं सोचें कि हमारे विश्व विद्यालय ने हमारे लिए क्या किया, बल्कि यह भी सोचें कि हम विश्वविद्यालय के लिए क्या कर सकते हैं.
कुलपति ने कहा कि हम इस विश्व विद्यालय के हित में जो कुछ भी कर सकते हैं, वह अविलंब करना शुरू करें. हम अंधेरे को कोसने की बजाय एक चिराग जलाएं. हम सब एक-एक चिराग जलाएंगे, तो एक दीपमाला बनेगी और अंधेरा दूर हो जाएगा और चारों ओर ज्ञान का प्रकाश फैलेगा. फिर हमारे विश्वविद्यालय के बारे में सकारात्मक धारणा बनेगी और राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हमारी नई पहचान कायम होगी. यही हमारा एकमात्र मकसद है.
बीएनएमयू की सूरत बदलनी हैं. दुष्यंत कुमार के शब्दों में, "हो गयी है पीर पर्वत सी पीघलनी चाहिए. इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए. सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं. अपनी कोशिश है कि सूरत बदलनी चाहिए."