मधेपुरा 20/03/2018
सभी मनुष्य एक हैं. किसी का किसी से कोई विरोध नहीं है. सभी मनुष्यों की सेवा ही सभी धर्मों का एक मात्र उद्देश्य है. यह बात कुलपति प्रो. (डाॅ.) अवध किशोर राय ने कही.
वे ठाकुर प्रसाद महाविद्यालय, मधेपुरा में मंगलवार को भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद् (आईसीपीआर), नई दिल्ली द्वारा संपोषित व्याख्यानों के उद्घाटनकर्ता के रूप में बोल रहे थे. कुलपति ने कहा कि सभी धर्मों की मूल शिक्षा एक ही है. सभी धर्म एक ही सत्य तक पहुँचने के अलग-अलग रास्ते हैं.
जिस तरह सभी नदियाँ अलग-अलग रास्तों से चलकर एक ही समुद्र में मिलती हैं, वैसे ही सभी धर्म अलग-अलग पूजा पद्धति के जरिए एक ही ईश्वर तक पहुँचते हैं. सभी धर्मों का एक ही मकसद है, मानवता की सेवा. कुलपति ने कहा कि भारतीय चिंतन परंपरा में एकत्व की भावना है. यह न केवल सभी मनुष्यों, वरन् संपूर्ण चराचर जगत को एक मानता है.
इसलिए इसमें किसी का किसी से कोई भेद नहीं है. अतः यहाँ सांप्रदायिक या धार्मिक झगड़े का कोई सवाल ही पैदा नहीं होता है. मुख्य अतिथि प्रति कुलपति प्रो. (डॉ.) फारूक अली ने कहा कि धर्मिकता और सांप्रदायिकता में अंतर है. सच्चा धार्मिक व्यक्ति कभी भी सांप्रदायिक नहीं हो सकता है। सांप्रदायिक की समस्या धर्मों की गलत व्याख्या के कारण पैदा हुई है. प्रति कुलपति ने कहा कि अपने विचारों एवं मान्यताओं को दूसरों पर थोपना ही सांप्रदायिकता है.
जैसे हम अपनी आस्था का सम्मान करते हैं, हमें वैसे ही दूसरों की आस्थाओं एवं विश्वासों का भी सम्मान करना चाहिए. इस अवसर पर पहला व्याख्यान 'धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा' विषय पर बिहार दर्शन परिषद् के पूर्व अध्यक्ष डाॅ. प्रभु नारायण मंडल का हुआ. उन्होंने कहा कि धर्मनिरपेक्षता एक पश्चिमी अवधारणा है.
इसका अर्थ है धर्म से परे होना। लेकिन वास्तविक जीवन में यह संभव नहीं है. धर्म हमारे जीवन का एक अनिवार्य अंग है. उन्होंने कहा कि धर्म एक उच्चतर सत्ता में विश्वास है. मनुष्य अपने जीवन में स्थायित्व पाना चाहता है. वह अपने चरम लक्ष्य की खोज करना चाहता है और इस क्रम में वह धर्म की शरण में जाता है. भारतीय परंपरा में धर्मनिरपेक्षता का अर्थ धर्म का विरोध नहीं है.
धर्मनिरपेक्षता का अर्थ है कि हम सभी धर्मों का आदर करें. दूसरा व्याख्यान 'धार्मिक सहिष्णुता एवं सर्वधर्म समभाव' विषय पर पी. के. राय मेमोरियल काॅलेज, धनबाद में दर्शनशास्त्र विभाग के अध्यक्ष डॉ. नरेश कुमार अम्बष्ट का हुआ. उन्होंने कहा कि भारत हमेशा से धार्मिक सहिष्णुता एवं सर्वधर्म समभाव का समर्थक रहा है.
भारत के लोगों ने हमेशा से विभिन्न मान्यताओं एवं विचारों के बीच समन्वय किया है. विरोधियों के बीच समन्वय और विविधता में एकता ही भारत की सबसे बङी विशेषता है. उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति एक महासमुद्र की तरह है. इसमें कई संस्कृतियाँ आकर विलीन हो गयी हैं. दुनिया के कई देशों के लोग भारत में आए और यहीं के होकर रह गये. हमने विभिन्न धर्मों एवं संस्कृतियों के बीच समन्वय किया. भारत की यह विशेषत विश्व को उसकी अनमोल देन है.
सभी मनुष्य एक हैं. किसी का किसी से कोई विरोध नहीं है. सभी मनुष्यों की सेवा ही सभी धर्मों का एक मात्र उद्देश्य है. यह बात कुलपति प्रो. (डाॅ.) अवध किशोर राय ने कही.
वे ठाकुर प्रसाद महाविद्यालय, मधेपुरा में मंगलवार को भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद् (आईसीपीआर), नई दिल्ली द्वारा संपोषित व्याख्यानों के उद्घाटनकर्ता के रूप में बोल रहे थे. कुलपति ने कहा कि सभी धर्मों की मूल शिक्षा एक ही है. सभी धर्म एक ही सत्य तक पहुँचने के अलग-अलग रास्ते हैं.
जिस तरह सभी नदियाँ अलग-अलग रास्तों से चलकर एक ही समुद्र में मिलती हैं, वैसे ही सभी धर्म अलग-अलग पूजा पद्धति के जरिए एक ही ईश्वर तक पहुँचते हैं. सभी धर्मों का एक ही मकसद है, मानवता की सेवा. कुलपति ने कहा कि भारतीय चिंतन परंपरा में एकत्व की भावना है. यह न केवल सभी मनुष्यों, वरन् संपूर्ण चराचर जगत को एक मानता है.
इसलिए इसमें किसी का किसी से कोई भेद नहीं है. अतः यहाँ सांप्रदायिक या धार्मिक झगड़े का कोई सवाल ही पैदा नहीं होता है. मुख्य अतिथि प्रति कुलपति प्रो. (डॉ.) फारूक अली ने कहा कि धर्मिकता और सांप्रदायिकता में अंतर है. सच्चा धार्मिक व्यक्ति कभी भी सांप्रदायिक नहीं हो सकता है। सांप्रदायिक की समस्या धर्मों की गलत व्याख्या के कारण पैदा हुई है. प्रति कुलपति ने कहा कि अपने विचारों एवं मान्यताओं को दूसरों पर थोपना ही सांप्रदायिकता है.
जैसे हम अपनी आस्था का सम्मान करते हैं, हमें वैसे ही दूसरों की आस्थाओं एवं विश्वासों का भी सम्मान करना चाहिए. इस अवसर पर पहला व्याख्यान 'धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा' विषय पर बिहार दर्शन परिषद् के पूर्व अध्यक्ष डाॅ. प्रभु नारायण मंडल का हुआ. उन्होंने कहा कि धर्मनिरपेक्षता एक पश्चिमी अवधारणा है.
इसका अर्थ है धर्म से परे होना। लेकिन वास्तविक जीवन में यह संभव नहीं है. धर्म हमारे जीवन का एक अनिवार्य अंग है. उन्होंने कहा कि धर्म एक उच्चतर सत्ता में विश्वास है. मनुष्य अपने जीवन में स्थायित्व पाना चाहता है. वह अपने चरम लक्ष्य की खोज करना चाहता है और इस क्रम में वह धर्म की शरण में जाता है. भारतीय परंपरा में धर्मनिरपेक्षता का अर्थ धर्म का विरोध नहीं है.
धर्मनिरपेक्षता का अर्थ है कि हम सभी धर्मों का आदर करें. दूसरा व्याख्यान 'धार्मिक सहिष्णुता एवं सर्वधर्म समभाव' विषय पर पी. के. राय मेमोरियल काॅलेज, धनबाद में दर्शनशास्त्र विभाग के अध्यक्ष डॉ. नरेश कुमार अम्बष्ट का हुआ. उन्होंने कहा कि भारत हमेशा से धार्मिक सहिष्णुता एवं सर्वधर्म समभाव का समर्थक रहा है.
भारत के लोगों ने हमेशा से विभिन्न मान्यताओं एवं विचारों के बीच समन्वय किया है. विरोधियों के बीच समन्वय और विविधता में एकता ही भारत की सबसे बङी विशेषता है. उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति एक महासमुद्र की तरह है. इसमें कई संस्कृतियाँ आकर विलीन हो गयी हैं. दुनिया के कई देशों के लोग भारत में आए और यहीं के होकर रह गये. हमने विभिन्न धर्मों एवं संस्कृतियों के बीच समन्वय किया. भारत की यह विशेषत विश्व को उसकी अनमोल देन है.
इसके पूर्व कार्यक्रम की शुरुआत दीप प्रज्वलित कर की गयी. अतिथियों का स्वागत अंगवस्त्र एवं पुष्पकूच देकर किया गया. अतिथियों ने महाविद्यालय के संस्थापक कीर्ति नारायण मंडल के चित्र पर माल्यार्पण किया. कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रभारी प्रधानाचार्य डॉ. परमानंद यादव ने की. संचालन आयोजन सचिव सह दर्शनशास्त्र विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डाॅ. सुधांशु शेखर ने की.
इस अवसर पर सिंडीकेट सदस्य द्वय डॉ. अजय कुमार एवं डॉ. जवहार पासवान, डाॅ. विश्वनाथ विवेका, डाॅ. राजीव रंजन, डाॅ. कपिलदेव प्रसाद, डाॅ. मीना कुमारी, डाॅ. प्रत्यक्षा राज, पूजा कुमारी, अमित कुमार, डाॅ. अनिल कुमार सहनी, डाॅ. आशुतोष कुमार, हर्षवर्धन सिंह राठौड़ आदि उपस्थित थे.
इस अवसर पर सिंडीकेट सदस्य द्वय डॉ. अजय कुमार एवं डॉ. जवहार पासवान, डाॅ. विश्वनाथ विवेका, डाॅ. राजीव रंजन, डाॅ. कपिलदेव प्रसाद, डाॅ. मीना कुमारी, डाॅ. प्रत्यक्षा राज, पूजा कुमारी, अमित कुमार, डाॅ. अनिल कुमार सहनी, डाॅ. आशुतोष कुमार, हर्षवर्धन सिंह राठौड़ आदि उपस्थित थे.