मधेपुरा 21/03/2018
वेदांत चिंतन परंपरा में एकत्व की भावना है. यह न केवल सभी मनुष्यों, वरन् संपूर्ण चराचर जगत को एक मानता है. इसके अनुसार संपूर्ण चराचर जगत एक ही तत्व से बना है.
सभी जड़ एवं चेतन में ईश्वर का अंश मौजूद है. सभी एक हैं. किसी का किसी से कोई विरोध नहीं है. सबों के हित में ही हमारा अपना भी हित है. यह बात कुलपति प्रो. (डाॅ.) अवध किशोर राय ने कही. वे ठाकुर प्रसाद महाविद्यालय, मधेपुरा में बुधवार को भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद् (आईसीपीआर), नई दिल्ली द्वारा संपोषित व्याख्यानों के उद्घाटनकर्ता के रूप में बोल रहे थे.
महाविद्यालय में यह कार्यक्रम लगातार दूसरे दिन आयोजित किया गया था. कुलपति ने कहा कि वेदांत विश्व को भारत की अनमोल देन है. यह सभी मनुष्यों की सेवा को ही मानव जीवन का चरम लक्ष्य मानता है. यह मानवता की सेवा का दर्शन है. कुलपति ने कहा कि वेदांत हमें 'वसुधैव कुटुंबकम्' एवं 'सर्वेभवन्तु सुखि' की शिक्षा देता है. यह हमें बताता है कि हम अपनी लालसाओं पर नियंत्रण रखे.
सिर्फ अपने स्वार्थ के बारे में नहीं सोचें, बल्कि दूसरों के लिए कार्य करें. हम अपनी धन-संपत्ति, प्रतिभा एवं ज्ञान को समाज एवं राष्ट्र के हित में लगाएं. कुलपति ने कहा कि व्यक्ति, समाज एवं राष्ट्र के लिए शिक्षा सबसे ज्यादा जरूरी है. यदि शिक्षा नहीं होगी, तो न तो समाजवाद आ सकेगा और न ही सामाजिक न्याय. ही कारण है कि डाॅ. अंबेडकर ने भी सामाजिक न्याय के लिए "शिक्षित बनो, संगठित रहो और संघर्ष करो" का संदेश दिया है.
कुलपति ने कहा कि समाजवाद एवं सामाजिक न्याय के लिए शिक्षा के क्षेत्र में समानता आवश्यक है. सबों को समान एवं गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध कराने की जरूरत है." राष्ट्रपति का बेटा हो, या भंगी की संतान, सबकी शिक्षा एक समान" इसे चरितार्थ करना होगा. मुख्य अतिथि प्रति कुलपति प्रो. (डॉ.) फारूक अली ने कहा कि वेदांत और समाजवाद के बीच समन्वय का प्रयास सराहनीय है. सच्चा वेदांती हमेशा सबों के हित की सोचता है.
सबों के हितों की रक्षा हो यही समाजवाद है और यही सामाजिक न्याय भी है. प्रति कुलपति ने कहा कि समाज में सभी वर्गों को समुचित हिस्सेदारी एवं भागीदारी मिलनी चाहिए. शोषित, पीङित एवं वंचित समूहों को समाज की मुख्यधारा में लाया जाना चाहिए. विशिष्ट अतिथि के रूप में बोलते हुए बिहार सरकार के पूर्व मंत्री डाॅ. रवीन्द्र चरण यादव ने कहा कि दुनिया में हमेशा सामाजिक न्याय के लिए संघर्ष होता रहा है. सामाजिक न्याय की स्थापना के बगैर न तो विकास हो सकता है और न ही शांति आ सकती है. सामाजिक न्याय युग की माँग और देश-दुनिया की आवश्यकता एवं अनिवार्यता है.
इस अवसर पर पहला व्याख्यान 'वेदांती समाजवाद' विषय पर अखिल भारतीय दर्शन परिषद् के अध्यक्ष डाॅ. जटाशंकर का हुआ. उन्होंने कहा कि वेदांत और समाजवाद दोनों का चरम उद्देश्य एक है. दोनों का सामाजिक लक्ष्य समान है. दोनों ही दर्शन शोषण एवं विषमता का अंत कर एक समतामूलक एवं न्यायपूर्ण समाज की स्थापना का आदर्श प्रस्तुत करता है. उन्होंने कहा कि आधुनिक भारतीय विचारकों ने वेदांत के सामाजिक पक्ष को सामने लाने का प्रयास किया है.
दूसरा व्याख्यान 'सीमांत नैतिकता और सामाजिक न्याय' विषय पर दर्शनशास्त्र विभाग, पटना विश्वविद्यालय, पटना के पूर्व अध्यक्ष डॉ. रमेश चन्द्र सिन्हा का हुआ. उन्होंने कहा कि साधारणतः इतिहास में सिर्फ संभ्रांत वर्ग के लोगों के बारे में चर्चा रहती है. लेकिन अब उसमें उपेक्षितों, वंचितों एवं सीमांतकों को भी स्थान मिलने लगा है. इसी से सीमांत नैतिकता की अवधारणा विकसित हुई है. उन्होंने कहा कि समाज में दो तरह के लोग हैं.
कुछ लोग संभ्रांत हैं, जबकि बहुसंख्यक लोग सीमांत हैं. अब ऐसे सीमांतकों के हितों की रक्षा करना ही सामाजिक न्याय है. इसके लिए दबे-कुचले एवं पिछड़े लोगों को विशेष सुविधाएं देना आवश्यक है. इसके पूर्व कार्यक्रम की शुरुआत दीप प्रज्वलित कर की गयी. अतिथियों का स्वागत अंगवस्त्रम् एवं पुस्पगुच्छ देकर किया. गया. अतिथियों ने महाविद्यालय के संस्थापक कीर्ति नारायण मंडल के चित्र पर माल्यार्पण किया. कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रभारी प्रधानाचार्य डॉ. परमानंद यादव ने की.
संचालन आयोजन सचिव सह दर्शनशास्त्र विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डाॅ. सुधांशु शेखर ने की. इस अवसर पर सिंडीकेट सदस्य द्वय डॉ. अजय कुमार एवं डॉ. जवहार पासवान, डाॅ. विश्वनाथ विवेका, डाॅ. राजीव रंजन, डाॅ. कपिलदेव प्रसाद, डाॅ. अनिल कुमार यादव, डाॅ. मुकेश कुमार चौरसिया, डाॅ. प्रत्यक्षा राज, पूजा कुमारी, अमित कुमार, डाॅ. ललन कुमार सहनी, डाॅ. आशुतोष कुमार, हर्षवर्धन सिंह राठौड़, रंजन यादव, सुरज कुमार, संजीव कुमार, सौरभ कुमार, संतोष कुमार, सनोज कुमार, सुभाष आदि उपस्थित थे.
वेदांत चिंतन परंपरा में एकत्व की भावना है. यह न केवल सभी मनुष्यों, वरन् संपूर्ण चराचर जगत को एक मानता है. इसके अनुसार संपूर्ण चराचर जगत एक ही तत्व से बना है.
सभी जड़ एवं चेतन में ईश्वर का अंश मौजूद है. सभी एक हैं. किसी का किसी से कोई विरोध नहीं है. सबों के हित में ही हमारा अपना भी हित है. यह बात कुलपति प्रो. (डाॅ.) अवध किशोर राय ने कही. वे ठाकुर प्रसाद महाविद्यालय, मधेपुरा में बुधवार को भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद् (आईसीपीआर), नई दिल्ली द्वारा संपोषित व्याख्यानों के उद्घाटनकर्ता के रूप में बोल रहे थे.
महाविद्यालय में यह कार्यक्रम लगातार दूसरे दिन आयोजित किया गया था. कुलपति ने कहा कि वेदांत विश्व को भारत की अनमोल देन है. यह सभी मनुष्यों की सेवा को ही मानव जीवन का चरम लक्ष्य मानता है. यह मानवता की सेवा का दर्शन है. कुलपति ने कहा कि वेदांत हमें 'वसुधैव कुटुंबकम्' एवं 'सर्वेभवन्तु सुखि' की शिक्षा देता है. यह हमें बताता है कि हम अपनी लालसाओं पर नियंत्रण रखे.
सिर्फ अपने स्वार्थ के बारे में नहीं सोचें, बल्कि दूसरों के लिए कार्य करें. हम अपनी धन-संपत्ति, प्रतिभा एवं ज्ञान को समाज एवं राष्ट्र के हित में लगाएं. कुलपति ने कहा कि व्यक्ति, समाज एवं राष्ट्र के लिए शिक्षा सबसे ज्यादा जरूरी है. यदि शिक्षा नहीं होगी, तो न तो समाजवाद आ सकेगा और न ही सामाजिक न्याय. ही कारण है कि डाॅ. अंबेडकर ने भी सामाजिक न्याय के लिए "शिक्षित बनो, संगठित रहो और संघर्ष करो" का संदेश दिया है.
कुलपति ने कहा कि समाजवाद एवं सामाजिक न्याय के लिए शिक्षा के क्षेत्र में समानता आवश्यक है. सबों को समान एवं गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध कराने की जरूरत है." राष्ट्रपति का बेटा हो, या भंगी की संतान, सबकी शिक्षा एक समान" इसे चरितार्थ करना होगा. मुख्य अतिथि प्रति कुलपति प्रो. (डॉ.) फारूक अली ने कहा कि वेदांत और समाजवाद के बीच समन्वय का प्रयास सराहनीय है. सच्चा वेदांती हमेशा सबों के हित की सोचता है.
सबों के हितों की रक्षा हो यही समाजवाद है और यही सामाजिक न्याय भी है. प्रति कुलपति ने कहा कि समाज में सभी वर्गों को समुचित हिस्सेदारी एवं भागीदारी मिलनी चाहिए. शोषित, पीङित एवं वंचित समूहों को समाज की मुख्यधारा में लाया जाना चाहिए. विशिष्ट अतिथि के रूप में बोलते हुए बिहार सरकार के पूर्व मंत्री डाॅ. रवीन्द्र चरण यादव ने कहा कि दुनिया में हमेशा सामाजिक न्याय के लिए संघर्ष होता रहा है. सामाजिक न्याय की स्थापना के बगैर न तो विकास हो सकता है और न ही शांति आ सकती है. सामाजिक न्याय युग की माँग और देश-दुनिया की आवश्यकता एवं अनिवार्यता है.
इस अवसर पर पहला व्याख्यान 'वेदांती समाजवाद' विषय पर अखिल भारतीय दर्शन परिषद् के अध्यक्ष डाॅ. जटाशंकर का हुआ. उन्होंने कहा कि वेदांत और समाजवाद दोनों का चरम उद्देश्य एक है. दोनों का सामाजिक लक्ष्य समान है. दोनों ही दर्शन शोषण एवं विषमता का अंत कर एक समतामूलक एवं न्यायपूर्ण समाज की स्थापना का आदर्श प्रस्तुत करता है. उन्होंने कहा कि आधुनिक भारतीय विचारकों ने वेदांत के सामाजिक पक्ष को सामने लाने का प्रयास किया है.
दूसरा व्याख्यान 'सीमांत नैतिकता और सामाजिक न्याय' विषय पर दर्शनशास्त्र विभाग, पटना विश्वविद्यालय, पटना के पूर्व अध्यक्ष डॉ. रमेश चन्द्र सिन्हा का हुआ. उन्होंने कहा कि साधारणतः इतिहास में सिर्फ संभ्रांत वर्ग के लोगों के बारे में चर्चा रहती है. लेकिन अब उसमें उपेक्षितों, वंचितों एवं सीमांतकों को भी स्थान मिलने लगा है. इसी से सीमांत नैतिकता की अवधारणा विकसित हुई है. उन्होंने कहा कि समाज में दो तरह के लोग हैं.
कुछ लोग संभ्रांत हैं, जबकि बहुसंख्यक लोग सीमांत हैं. अब ऐसे सीमांतकों के हितों की रक्षा करना ही सामाजिक न्याय है. इसके लिए दबे-कुचले एवं पिछड़े लोगों को विशेष सुविधाएं देना आवश्यक है. इसके पूर्व कार्यक्रम की शुरुआत दीप प्रज्वलित कर की गयी. अतिथियों का स्वागत अंगवस्त्रम् एवं पुस्पगुच्छ देकर किया. गया. अतिथियों ने महाविद्यालय के संस्थापक कीर्ति नारायण मंडल के चित्र पर माल्यार्पण किया. कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रभारी प्रधानाचार्य डॉ. परमानंद यादव ने की.
संचालन आयोजन सचिव सह दर्शनशास्त्र विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डाॅ. सुधांशु शेखर ने की. इस अवसर पर सिंडीकेट सदस्य द्वय डॉ. अजय कुमार एवं डॉ. जवहार पासवान, डाॅ. विश्वनाथ विवेका, डाॅ. राजीव रंजन, डाॅ. कपिलदेव प्रसाद, डाॅ. अनिल कुमार यादव, डाॅ. मुकेश कुमार चौरसिया, डाॅ. प्रत्यक्षा राज, पूजा कुमारी, अमित कुमार, डाॅ. ललन कुमार सहनी, डाॅ. आशुतोष कुमार, हर्षवर्धन सिंह राठौड़, रंजन यादव, सुरज कुमार, संजीव कुमार, सौरभ कुमार, संतोष कुमार, सनोज कुमार, सुभाष आदि उपस्थित थे.