हमारा नव वर्ष - मधेपुरा खबर Madhepura Khabar

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31 दिसंबर 2018

हमारा नव वर्ष

मधेपुरा
नव वर्ष की शुभकामनाएं आने शुरू हो चुके हैं. काफी दिनों से फेसबुक, व्हाट्सएप्प पर सोये लोग जिनका मैसेज सिर्फ त्योहार और नव वर्ष जैसे दिन ही सिमट कर रह जाती है. "हैप्पी न्यू ईयर" के तस्वीर से मोबाइल का स्टोरेज फूल होता जा रहा है.
                फोन की गैलरी में व्हाट्सएप्प एल्बम की तस्वीर जो सप्ताह में डिलीट की जाती थी वो अब प्रत्येक दिन करना पड़ता है. जब फोन का स्टोरेज ऐसे तस्वीर से प्रत्येक दिन फूल होता है ना वास्तविक में त्योहार और नए वर्ष का असली फेललिंग्स तब ही आता है. वैसे ये सिलसिला 1 जनवरी तक ही सिमट कर नहीं रहता बल्कि आधा जनवरी बीत जाने के वावजूद भी जारी रहता है.
                  ज्यादे हैरान होने की जरूरत नहीं है अपना देश भारत है, सबकुछ संभव होता है यहाँ और जब बात बिहार की हो जाय तो बिल्कुल ज्यादे नहीं सोचनी चाहिए. क्योंकि हमारा बिहार सबकुछ में आगे होता है. नए वर्ष के सिलसिले में लोगों की प्लानिंग बिल्कुल नई-नई होती है. नए जगह घूमने की प्लानिंग होती है. कुछ लोगों का तो फिक्स रहता है हर साल नए वर्ष में नेपाल जाना. समझ नहीं आता कुछ लोग भारत छोड़ कर नेपाल जाना क्यों पसंद करते हैं.
                    भारत छोटा भी तो नहीं. भारत में भी तो कई प्रसिद्ध घूमने का स्थल है फिर भी नेपाल. जो लोग नए वर्ष में घूमने नेपाल चले जाते हैं क्या कहें उनको, मुझे तो उस दिन स्नान करने का भी मन नहीं करता. हालांकि घरवाले के डर से उस दिन स्नान कर लेते हैं. मुझे नए वर्ष में कुछ नया का फेललिंग्स नहीं आता है. जैसे सब दिन तारीख महीना बदलते हैं उस दिन भी तो वही चीज़ होती है, वही दिन होती है, वही सूर्य निकल आता है, वही शाम होती है, वही रात में चाँद दिखती है.
                  हालांकि बच्चे में चाँद मामा के रिश्ते में आते हैं और जैसे-जैसे हम बड़े हो जाते हैं, थोड़ा समझदार हो जाते हैं वो चाँद "मामा" से "मामी" जरूर बन जाती है. इस बदलाव को हम भी मानते हैं. देखा जाय तो उस दिन भी हर दिन के जैसे कितने भखे मर जाते हैं, कितने ठंठ के वजह से मर जाते हैं. विद्यार्थी की बात करे तो हम विद्यार्थी के लिए क्या ये सचमुच नए वर्ष, नए वर्ष होती है क्या, बिल्कुल नहीं. हम नए वर्ष के चक्कर में 1 दिन को अच्छा से बर्बाद कर देते हैं. जबकि विद्यार्थी के लिए 1 घंटे भी महत्वपूर्ण होती है.
                         हम विद्यार्थियों की नव वर्ष तो तब आते हैं जब हम बेरोजगार से रोजगार में आते हैं. कितने सारे भावी प्लानिंग में पापा के अरमान होते हैंं. माँ जो कई वर्षों से बिना हमें कुछ बताये ख़्वाब देखते रहती है. जब इन सब के इच्छा को पूरा कर देते हैं. बेटा पापा के पैसे पर नहीं, पापा जब बेटे की पैसे पर नाज कर बैठते हैं उस दिन सचमुच हमारे लिए नए वर्ष की शुरुआत होती है. 
(कल्पना- नवीन कुमार)

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