उन्होंने बताया कि वे प्रोफेसर सिन्हा से पटना में कई बार मिलने और उनका आशीर्वाद प्राप्त करने का अवसर मिला. मैं उनसे आखिरी बार 26 मार्च, 2023 को मिला था. इस दिन भारत विकास परिषद् के तत्वावधान में सुप्रसिद्ध दार्शनिक प्रो. (डॉ.) रमेशचन्द्र सिन्हा की धर्मपत्नी डॉ. विजयश्री की स्मृति में जे. डी. वीमेंस कॉलेज, पटना में ‘शताब्दी वर्ष में भारत की आंतरिक एवं वैश्विक स्थित विषयक’ व्याख्यानमाला का आयोजन किया गया था. उन्होंने बताया कि प्रो. अमरनाथ ने इस कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कहा था कि देश सामाजिक एवं राजनीतिक संकट के दौर से गुजर रहा है. हर तरफ अलगाववादी ताकतें अपना षड्यंत्र कर रहे हैं. ऐसे में हम सबों को अपना राष्ट्र-धर्म निभाने के लिए आगे आना चाहिए.
उन्होंने बताया कि वे कार्यक्रम के पूर्व प्रोफेसर रमेशचंद्र सिन्हा सर की गाड़ी लेकर प्रोफेसर अमरनाथ बाबू के घर गया था. फिर उनको साथ लेकर कार्यक्रम स्थल (जे. डी. वीमेन्स कालेज) गया. कार्यक्रम की समाप्ति के बाद मैंने उसी गाड़ी से अमरनाथ बाबू को उनके घर पर छोड़ते हुए रमेश बाबू के घर गया था. आने-जाने के क्रम में उन्होंने हमसे ‘बीएनएमयू’ के बारे में काफी बातचीत की थी. उन्होंने बताया कि प्रोफेसर अमरनाथ बाबू उनके द्वारा आयोजित एक अंतरराष्ट्रीय सेमिनार ‘सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के आयाम’ के लिए अपना एक अलेख ‘विवेकानंद का राष्ट्रवाद’ उपलब्ध कराया था, जो मेरे सेमिनार के ‘प्रोसीडिंग्स बुक’ में प्रकाशनाधीन है. उन्होंने मुझे अपनी हस्तलिपि में ‘बीएनएमयू’ से जुड़ा अपना एक आलेख भी उपलब्ध कराया है, जिसे आगे किसी उचित अवसर पर ऐतिहासिक धरोहर के रूप में प्रकाशित किया जाएगा.
उन्होंने बताया कि प्रोफेसर अमरनाथ सिन्हा 87 वर्ष की उम्र में भी लगातार सक्रियता रहे और हमेशा अपनी विचारधारा से संबद्ध एवं आबद्ध रहे. वे सोशल मीडिया पर भी काफी सक्रिय थे और समाज एवं राष्ट्रहित के मुद्दों पर खुलकर लिखते थे. उन्होंने बताया कि प्रोफेसर अमरनाथ अक्सर उनके एवं विश्वविद्यालय से जुड़े अन्य लोगों के पोस्ट पर भी अपनी प्रतिक्रिया देते रहते थे और कई अवसरों पर वे स्वयं ही हमें फोन करके विश्वविद्यालय का हालचाल लेते रहते थे. उन्होंने बताया कि प्रोफेसर अमरनाथ के निधन से पूरे विश्वविद्यालय परिवार ने अपना एक मार्गदर्शक एवं अभिभावक खो दिया है. आज वे सशरीर हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनके विचार एवं कार्य हमेशा हमारे साथ रहेंगे- “उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो! न जाने किस घड़ी में जिंदगी की शाम हो जाए!!”
(रिपोर्ट:- ईमेल)
पब्लिसिटी के लिए नहीं पब्लिक के लिए काम करना ही पत्रकारिता है....