एक सांस रूह के धागे को तोड़ती हुई सीधे आसमां तक के सफर को पूरा कर लेना चाहती है. बिना रूके बिना संभले बगैर किसी इजाजत और अवकाश के.
जहां असंख्य तारों के बीच शायद वो सुरक्षित महसूस कर सकेगी. जहां उसका कोई बिछड़ा पुराना यार मिलेगा, जिसके गले लिपट कर वो खुद की गुलामी से आजादी तक की दास्तान सुना देना चाहती होगी.
जहां उसे वैसा कोइ हमदर्द मिल जाएगा जो उसकी आँसुओं को पोंछ कर उसे कहेगा कि अभी देर नहीं हुई, तुम एक नई जिंदगी शुरू कर सकती हो. जिसके बाद वो बीती बातों को चादर से ढक कर एक नया बसेरा बनाएगी जहां वो सुरक्षित तो होगी पर वहां वो रूह नहीं होगी जो हर घड़ी उसके साथ थी.
लेकिन अफसोस के साथ वो खुद को हीं रूह बना फिर से कैद करना चाहेगी. चंद सांसों को जिसकी भी चाहत हो, शायद आजादी हीं होगी पर वो आजाद ना हो पाएगी कभी, क्यूंकि उसने समझौता कर लिया होगा अपने कर्तव्य से.
जहां असंख्य तारों के बीच शायद वो सुरक्षित महसूस कर सकेगी. जहां उसका कोई बिछड़ा पुराना यार मिलेगा, जिसके गले लिपट कर वो खुद की गुलामी से आजादी तक की दास्तान सुना देना चाहती होगी.
जहां उसे वैसा कोइ हमदर्द मिल जाएगा जो उसकी आँसुओं को पोंछ कर उसे कहेगा कि अभी देर नहीं हुई, तुम एक नई जिंदगी शुरू कर सकती हो. जिसके बाद वो बीती बातों को चादर से ढक कर एक नया बसेरा बनाएगी जहां वो सुरक्षित तो होगी पर वहां वो रूह नहीं होगी जो हर घड़ी उसके साथ थी.
लेकिन अफसोस के साथ वो खुद को हीं रूह बना फिर से कैद करना चाहेगी. चंद सांसों को जिसकी भी चाहत हो, शायद आजादी हीं होगी पर वो आजाद ना हो पाएगी कभी, क्यूंकि उसने समझौता कर लिया होगा अपने कर्तव्य से.
(रिपोर्ट: मधेपुरा:- गौरव गुप्ता)