समर्पण - मधेपुरा खबर Madhepura Khabar

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6 जनवरी 2018

समर्पण

मधेपुरा 05/01/2018 
घूंट रही है नदियों की भी जान इस ठंढ में, जिसमें मैं कल-कल बहता हीं जा रहा हूँ.
        वो लहरें मुझे डुबो देना चाहती हैं या खुद में समा लेना चाहती हैं, ये मैं नहीं जानता पर अनभिज्ञ बन उसके आगोश में मैं बहता हीं जा रहा हूँ.
                    जल की कंपकंपी जब भी हद से ज्यादा बढ़ जाती है तो वो मुझे अपनी ओर खींच लेती है, और मैं घबरा सा जाता हूँ.  वो आनंदित हो रही होती है और मैं ढोंग कर रहा होता हूँ उसका होने का पर समय के साथ उसकी खुशी मुझे धीरे-धीरे उपलब्धी सी लगने लगती है.
                जिसे मैं प्रेम-भाव के चरम तक महसूस करना चाहता हूँ. वो खुद को जी रही होती है और मैं खुद को उस लहर के साथ प्रेम-बंध किया मदमस्त बहाव में बस बहता ही रहना चाहता हूँ.
           ताकि जब मैं नींद पड़ जाऊँ और एक ख्वाब के आने के इंतजार में कुछ वक्त भटकता रहूँ. अंततः वो ख्वाब मुझे हासिल हो भी जाए, जिस ख्वाब में मैं एक ऐसे शख्स को आइना निहारता हुआ देखूं जो बिल्कुल मेरी सिद्धांतों पर खड़ा उतरता हो.

         ख्वाब में गोता लगाते हुए उस लहर की जुल्फों को संवारने जब मैं अपनी हाथ का स्पर्श कराऊँ तो मेरी नींद टूट जाए और मैं खुद को एक मझधार में पा कर किनारा लगने की व्यर्थ कोशिश करने लगूँ पर वो लहर मुझे खुद में समा जाए और मैं उसके प्रेम में डूब कर विजयी हो जाऊँ. 
(कल्पना:- गौरव गुप्ता) 

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