मधेपुरा 04/01/2018
कहीं ये मेरा ढोंग-मात्र तो नहीं कि मैं कतारबद्ध नहीं उन विचार के पटल पर जहां अक्सर विचारवानों की भीड़ दिखा करती है. अक्सर पगडंडी ही क्यूं चुना करता हूँ मैं,जबकि उसके समानांतर पक्की सड़क भी जाती है उस मंजिल तक.
कहीं ये मेरा भय तो नहीं कि जीवन के इस कंक्रीटनुमा पथ पर चलते हुए मैं किसी तेज रफ्तार वाहन के चपेट में आ जाउं या फिर खुद की आँखों के धोखा तले किसी खाई में समा जाऊँ जहाँ से ये दुनिया और भी ऊँची दिखती हो ठीक उतना ही जितना कि हम किसी के दबाव में दबे-सहमे महसूस करते हैं.
ये भी हो सकता है कि मुझे हरे-भरे खेतों में मिलावटी रूप से लगे पीले सरसों की फूल सौंदर्यमुग्ध कर रही हो. जिसकी छुअन महसूस करने को खेत की मेड़ पर चलते हुए वो सरसों का नवजात शिशु सा पुष्प स्वतः मेरे हृदया-स्पर्श हो जाया करती हो.
जो उस दुलार-स्नेह की क्षति पूर्ती करती होगी जिसका अरमान एक सन्नाटा भरे दिल में बरसों से पूरा ना हो पाया हो. शायद मुझे इस गाँव की गलियों से प्यार हो गया है किसी शहर की रिश्तानुमा फ्लाईओवर को पूरी तरह समझने के बाद जो क्षणिक ऊँचाई दिया करती है.
कहीं ये मेरा ढोंग-मात्र तो नहीं कि मैं कतारबद्ध नहीं उन विचार के पटल पर जहां अक्सर विचारवानों की भीड़ दिखा करती है. अक्सर पगडंडी ही क्यूं चुना करता हूँ मैं,जबकि उसके समानांतर पक्की सड़क भी जाती है उस मंजिल तक.
कहीं ये मेरा भय तो नहीं कि जीवन के इस कंक्रीटनुमा पथ पर चलते हुए मैं किसी तेज रफ्तार वाहन के चपेट में आ जाउं या फिर खुद की आँखों के धोखा तले किसी खाई में समा जाऊँ जहाँ से ये दुनिया और भी ऊँची दिखती हो ठीक उतना ही जितना कि हम किसी के दबाव में दबे-सहमे महसूस करते हैं.
ये भी हो सकता है कि मुझे हरे-भरे खेतों में मिलावटी रूप से लगे पीले सरसों की फूल सौंदर्यमुग्ध कर रही हो. जिसकी छुअन महसूस करने को खेत की मेड़ पर चलते हुए वो सरसों का नवजात शिशु सा पुष्प स्वतः मेरे हृदया-स्पर्श हो जाया करती हो.
जो उस दुलार-स्नेह की क्षति पूर्ती करती होगी जिसका अरमान एक सन्नाटा भरे दिल में बरसों से पूरा ना हो पाया हो. शायद मुझे इस गाँव की गलियों से प्यार हो गया है किसी शहर की रिश्तानुमा फ्लाईओवर को पूरी तरह समझने के बाद जो क्षणिक ऊँचाई दिया करती है.
(कल्पना:- गौरव गुप्ता)