रुचि स्मृति |
कवियों की रचना हो या नव सृजन बिन नारी सब सून है. इस तथ्य से सभी वाकिफ हैं. मगर नजरअंदाज करने का प्रयास सभी करते हैं. एक रचना कर्णिका पाठक की, इस दर्द को वाजिब बयान करती है.
काली घटायें कुछ इस कदर छाई रूपय पैसों के मेल गूंजी शहनाई व्यापारी ने मनचाही बोली लगाई देनदार ने खुशी से गर्दन झुकाई मोलभाव था यह किसी के सपनों का, दांव खेला जा रहा था उसके जीवन का, अरमानों का हुआ. कुछ ऐसा व्यापार वस्तु का कोई नहीं था उसमें विचार जब ऐसा हीं देना था जीवन संसार तो सही हीं है "कन्या भ्रूण हत्या का विचार.
कहने का तात्पर्य इस कविता के माध्यम से मेरा यहाँ यही था कि, लड़कियाँ अपने में संपूर्ण हैं, उनकी बेइज्जती मत कीजिए दहेज मांग कर. समाज में आज फैली कूरीतियों की जड़ में एक कारण दहेज प्रथा भी है, यह जब आप समाज का गहन अध्ययन करेंगे तो अवश्य पायेंगे. बेमेल शादियाँ हो रही, या जो अच्छी मिलान वाली हो भी रही तो तलाक बढ़ रहे हैं. आज कल लड़कियाँ स्वाबलम्बी हो रही तो शादी सम्हालने की जिम्मेदारी अकेले की नहीं मानती.
पारम्परिक सोच वाले लड़के इस चीज को कई बार सम्हाल नहीं पाते और शादियाँ टूटती हैं. तथा प्राकृतिक आवश्यक्ताओं की पूर्ती हेतू फिर कुछ ऐसे कदम दोनों उठाते जो समाज को गलत दिशा देते हैं. अगर बाल - बच्चे हो गए हैं फिर तलाक हुआ तो उन बच्चों की परवरिश कई बार उचित तरीके से नहीं हो पाता, क्युंकि बच्चे की परवरिश में मां - बाप दोनों का होना अतिआवश्यक है.
इस प्रकार एक नव समाज की रचना अधूरेपन के साथ होती है. यह मैंने एक छोटा सा उदाहरण पेश किया है, इसके कई और रूप हैं जो और अधिक भयावह हैं. मैं तो यही कहुंगी की आधुनिक समाज इन सब चीजों पर ध्यान दे, वर्ना संस्कृति का पतन जो हो रहा है उसके जिम्मेदार सब होंगें. दहेज में जो धन प्राप्त होता है उससे पूरी जिन्दगी का खर्च चल नहीं सकता, कमाना पड़ेगा हीं.
थोड़े से पैसे के लिए ,समाज में अपना रूतबा दिखाने हेतू, दहेज लेना शौख हीं माना जाएगा मेरी नजर में. लड़कियों से खास अनुरोध है कि काबिल बनें और समाज तथा संस्कृति को बचाने में सहयोगी भी, दहेज नहीं दें. इसका जम कर विरोध करें.
(कल्पना:- रुचि स्मृति)