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प्रिया सिन्हा |
आँखें आँसुओं से लबालब भर जाती हैं.
जब किसी भी माँ की प्यारी सी बच्ची,
उसके आखों के सामने ही गुजर जाती है.
सींचा था जिस फूल को बड़े हीं प्यार से कभी,
कुछ बेरहमों की वजह से उनकी बगिया उजड़ जाती है,
हो जाती है वो पागल रहती है वो खोई-खोई सी,
वापिस लौट जब वो अपने सूने घर जाती है.
दिल में दर्द और आँखों में लिए तूफान,
न्याय के लिए वो माँ रब के दर जाती है,
मिलता नहीं जब न्याय उन्हें उनसे तब,
वो बुरी तरह से टूट कर बिखर जाती है.
याद कर-कर के उसकी मीठी बातों को,
वो माँ गमगीन हो बीमार भी पड़ जाती है,
मत पूछो आलम असर-ए-हादसा का दोस्तों,
वो माँ बिचारी तो जीते-जी हीं मर जाती है.
(कल्पना:- प्रिया सिन्हा)