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31 दिसंबर 2018

फेसबुक भी अब एक ग्रह

सहरसा
प्रकृति में कई सारे रंग सम्मलित हैं, कई सारे गुण सम्मलित हैं. प्रकृति के हर एक दृश्य कुछ ना कुछ कह रही होती है. कुछ वास्तविक दृश्य भी हैरान कर देने वाली होती है. पृथ्वी एक ग्रह है, जानता हूँ.
               फिर भी इन ग्रह का होना और कभी-कभी वैज्ञानिकों द्वारा अंत की ओर इशारा करना काफी हैरान कर देती है. पृथ्वी पर इंसान का होना वास्तविक है, लेकिन कभी-कभी आभाषी लगता है. ठीक उसी तरह जिस तरह फेसबुक पर लड़की की तस्वीर. बढ़ती विकास और बेरोजगारी के दौड़ में फेसबुक ही वास्तविक दुनिया लगती है. ऐसा लगता जैसे फेसबुक भी कोई एक ग्रह है. जिसपे आज अधिकांश इंसान इस ग्रह पर पहुँचने में कामयाब हो गए हैं.
                         यूँ कहें तो "फेसबुक हमारा दूसरा भारत बन चुका है." लाइक, कमेंट और शेयर की गिनती कर रहें होते हैं ठीक उसी तरह जिस तरह वास्तविक दुनिया से शाम के तारे. फेसबुक की दुनिया में पहले इंसान का फील, रियेक्ट कैसा भी हो लेकिन सिर्फ लाइक किए जाते थे. इंसान के रियेक्ट की कोई कदर नहीं होती थी. लेकिन अब ये फेसबुक की दुनिया रियेक्ट भी समझने लगे.
                       सबसे हैरान तो तब हो जाता हूँ जब रियेक्ट की कैटेगरी में जाकर हर रियेक्ट को चेक करते हैं कि लव की रियेक्ट कितने आदमी ने किया और किसने-किसने किया. अगर लड़की अपनी फोटो फेसबुक पर अपलोड किया हो और उनके बॉयफ्रेंड लव कि रियेक्ट ना करके, गलती से सिर्फ सामान्य लाइक का रियेक्ट कर के ऊपर की ओर धकेल दिया हो तो इस आधुनिक युग में उस छोटी-सी गलती की वजह से शायद दो दिन से अधिक भी झगड़े होते हैं.
                        झगड़े के समय जानू, सोना, बाबू ना कह के मनाओ तो लड़की का दिमाग और बौखला जाता है. तब तक नहीं मानती जब तक बाबू, जानू, सोना, चाँद ना कह के मनाओ. मैं तो कहता हूँ नखरे दिखाना और भाव खाना लड़कियों से सीखें कोई. इनका उद्देश्य प्रेम करने से ज्यादा, लड़को को पिघलते हुए देखना होता है. जिंदगी है तो झगड़े, टेंशन कभी-कबार हो जाना आम बात होती है.
                        लेकिन आशिकों के झगड़े एक अलग स्तर से होती हैं. उनमें हाँथ काट लेना, आत्महत्या कर लेना, शरीर को हानि पहुँचाना मेरे समझ से बिल्कुल बाहर है. अकसर ये कठिन कदम तब उठाये जाते हैं जब लैला की बाते मजनू ना माने या मजनू की बाते लैला ना माने. इनका एक-दूसरे के प्रति आकर्षण दिखाने का अंतिम कदम होता है. इनकी कहानी कोचिंग, पार्क या किसी दोस्त द्वारा कहीं पर एक बार रूबरू होने के बाद फेसबुक से शुरू होता है और कुछ दिन बाद व्हाट्सएप्प तक प्रेम आ पहुँचता हैै.
                     आगे व्हाट्सएप्प से फोन कॉल होने लगती है. नजदीकियां बढ़ने के बाद बच जाती है सिर्फ ब्रेकअप. इनकी ब्रेकअप अकसर एक छोटी-सी वजह से होती है, कोई खाश वजह नहीं होता है. किन्ही-किन्ही की होती भी हैं. ब्रेकअप होने के बाद फोन कॉल से फेसबुक, व्हाट्सएप्प पर फिर से लंबे समय तक समय बिताते हैं. लैला मजनू को या मजनू लैला को कटी हुई जख्मी हाथों का तस्वीर आदान-प्रदान करने का काम करते हैं. किसी तरह मामला पूरी तरह शांत होने के बाद या फिर से ऐसी कोई गलती नहीं होने की वादा करके फिर से फोन कॉल पर आते हैं.
                     दो-दो दिन पर ही ब्रेकअप हो जाना ये उनके स्तर की प्रेम होती है. अकसर किन-किन बातों पर ब्रेकअप होती है थोड़ा उसपर केंद्रित करने का कोशिश करते हैं- "मैं तो तुम्हें बोला था कि वहाँ मत जाना तुम फिर क्यों गयी, मैं तो तुम्हें बोला था कि तुम्हारी जो वो दोस्त है उनके साथ नहीं रहोगी, मैं तो तुम्हें बोला था ना कि आज मैं कोचिंग पढ़ने नहीं जाऊँगा फिर क्यों गयी तुम, मैं तो तुम्हें बोला था ना कि आज इतना बजे फोन ऑन रखना फिर क्यों बंद पड़ा था, अभी आधे घंटे से तुम किनसे फोन पर व्यस्त थी, कल तुम्हारे साथ वो लड़का कौन था जिससे बड़ी हँस-हँस के बात कर रही थी और हाँथ मिला रही थी, आज मेरा जन्मदिन है और तुम्हें याद तक नहीं" और भी बहुत कुछ.
                   वैसे अगर देखा जाय तो असली प्रेम इनका फेसबुक और व्हाट्सएप्प पर ही छलकता है. वास्तविक दुनिया से काफी अलग होती है. फेसबुक पर इधर लैला, मजनू की फोटो पर लव की रियेक्ट करते हैं. उधर से मजनू, लैला की फोटो पर लव की रियेक्ट करते हैं. मैसेंजर पर लैला, मजनू की बाते हो रही के दौरान रोमांटिक बात हो गयी तो लैला या मजनू दिल की इमोजी भेजते हैं और मैसेंजर पर एक दिल की इमोजी भेजने पर सैकड़ों दिल आँखों के सामने जब शिरकत करते हुए ऊपर कि ओर जाता है, वास्तविक में प्रेम का एहसास तब होता हैै. इस तरह फेसबुक एक सफल ग्रह के रूप में कामयाब हो रही है. 
(कल्पना:- नवीन कुमार)

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