(संवाददाता कुमारखंड)
कलमकार हूँ, मैं सच हीं लिखता हूँ,तुम मेरी बातों का बुरा मानना छोड़ दो. सच लिखने से पहले इजाज़त लूंगा तुमसे, तुम ये ग़लतफहमियां पालना छोड़ दो.
क्या बिक जाऊंगा चंद सोने के सिक्कों में, अरे छोड़ो तुम मेरी कीमत आंकना छोड़ दो. ठीक है कभी एक वक़्त की हीं रोटी मिलेगी, तुम मेरे निबालों का हिसाब लगाना छोड़ दो. करूँगा पर्दाफाश सब गुनाहों और घोटालों का, सच पे झूठ की कालिख लगाना छोड़ दो.
कभी काटा जाऊंगा कभी रौंदा भी जाऊंगा, कभी ज़हर तो कभी गोलियां भी खाऊंगा. हां मारा जाऊंगा, पर क्या ख़ामोश हो जाऊंगा, रोक लोगे मुझे, ये झूठे ख़्वाब सजाना छोड़ दो. सीने में लगी गोलियों में, जिस्म मेंधसे खंजर में कभी खून में फैले ज़हर में, चीत्कार सुनाई देगी मेरी तुम मेरी आवाज को कफ़न में दबाना छोड़ दो.
सच के खज़ाने लेकर घूमता हूँ, गर न लौट पाया? घरवालों मेरे इंतेज़ार में नज़रे बिछाना छोड़ दो. मेरे खून की धार हीं बनेगी स्याही मेरी कलम की, समझौता कर लूंगा हालात से ये आस लगाना छोड़ दो. कलमकार हूँ सच हीं लिखता हूँ और सच हीं लिखूंगा, झूठ के तराजू में मुझे तुम तौलना छोड़ दो...
कलमकार हूँ, मैं सच हीं लिखता हूँ,तुम मेरी बातों का बुरा मानना छोड़ दो. सच लिखने से पहले इजाज़त लूंगा तुमसे, तुम ये ग़लतफहमियां पालना छोड़ दो.
क्या बिक जाऊंगा चंद सोने के सिक्कों में, अरे छोड़ो तुम मेरी कीमत आंकना छोड़ दो. ठीक है कभी एक वक़्त की हीं रोटी मिलेगी, तुम मेरे निबालों का हिसाब लगाना छोड़ दो. करूँगा पर्दाफाश सब गुनाहों और घोटालों का, सच पे झूठ की कालिख लगाना छोड़ दो.
कभी काटा जाऊंगा कभी रौंदा भी जाऊंगा, कभी ज़हर तो कभी गोलियां भी खाऊंगा. हां मारा जाऊंगा, पर क्या ख़ामोश हो जाऊंगा, रोक लोगे मुझे, ये झूठे ख़्वाब सजाना छोड़ दो. सीने में लगी गोलियों में, जिस्म मेंधसे खंजर में कभी खून में फैले ज़हर में, चीत्कार सुनाई देगी मेरी तुम मेरी आवाज को कफ़न में दबाना छोड़ दो.
सच के खज़ाने लेकर घूमता हूँ, गर न लौट पाया? घरवालों मेरे इंतेज़ार में नज़रे बिछाना छोड़ दो. मेरे खून की धार हीं बनेगी स्याही मेरी कलम की, समझौता कर लूंगा हालात से ये आस लगाना छोड़ दो. कलमकार हूँ सच हीं लिखता हूँ और सच हीं लिखूंगा, झूठ के तराजू में मुझे तुम तौलना छोड़ दो...
(कल्पना:- इकबाल राजा)