मधेपुरा: विश्व रंगमंच दिवस पर कलाकारों की एक संगोष्ठी प्रांगण रंगमंच कार्यालय में हुई. संगोष्ठी में वर्तमान समय में रंगमंच की दशा और दिशा पर चर्चा हुई. कलाकारों ने रंगमंच से संबंधित अपनी बातें रखी. प्रांगण रंगमंच के अध्यक्ष संजय कुमार की अध्यक्षता में आयोजित संगोष्ठी में कलाकारों ने कहा कि रंगमंच अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम है. कलाकार समाज में व्याप्त कुरीतियों और रूढ़ीवादिता को अपनी कला के माध्यम से लोगों तक पहुंचाकर उसे जागरूक करते हैं.
संगोष्ठी में अमित आनंद ने कहा कि जब सिनेमा नहीं हुआ करता था, तब लोगों के मनोरंजन का सशक्त साधन रंगमंच हुआ करता था. रंगमंच न सिर्फ मनोरंजन का साधन है बल्कि ये लोगों को सामाजिक और भावात्मक रूप से जगाने का भी साधन है. रंगमंच सीखने वाला कलाकार बनने के साथ ही एक अच्छा इंसान भी बनता है. नाटक कलाकार और दर्शक दोनों के ही मन पर अपनी अलग छाप छोड़ता है.
गायक सुनीत साना ने कहा कि इस दिन को मनाने का मुख्य उद्देश्य लोगों में रंगमंच को लेकर जागरुकता लाना और रंगमंच के महत्व को समझाना है. रंगमंच न सिर्फ लोगों का मनोरंजन करता है बल्कि उन्हें सामाजिक मुद्दों के प्रति जागरूक भी करता है. उन्होंने कहा कि भारत में रंगमंच का इतिहास बहुत पुराना माना है क्योंकि ऐसी मान्यता है कि नाट्यकला का विकास सबसे पहले भारत में ही हुआ.
रंगकर्मी शिवानी अग्रवाल और शिवांगी गुप्ता ने कहा कि आज कलाकारों को आगे बढ़ने के लिए सरकार पर्याप्त सुविधा उपलब्ध नहीं करा रही है. उन्होंने कहा कि ग्रामीण क्षेत्रों में कलाकारों की कमी नहीं है. आशीष सत्यार्थी और अक्षय कुमार सोनू ने कहा कि नयी तकनीक ने पौराणिक रंगमंच को कमजोर किया है. इसके बावजूद बड़ी संख्या में दर्शक बने हुए हैं.
निवेदिता और अन्नू प्रिया ने कहा कि महिला कलाकारों को अधिक सुविधा मिले तो वह अपनी प्रतिभा को आगे बढ़ा सकती है. संगोष्ठी में शशि भूषण कुमार, नीरज कुमार निर्जल ने कहा कि नयी तकनीक ने पौराणिक रंगमंच को कमजोर किया है. इसके बावजूद बड़ी संख्या में दर्शक बने हुए हैं. मौके पर गरिमा, दिलखुश कुमार, विद्यांशु, विकास कुमार पलटू, नेहा, संतोष, तनु, लिसा रानी, दिव्या, मुस्कान, अंशु, रक्षा, कुमार, चिंटू चैलेंज, ऋषिका, तनुजा सोनी ओनू, लीजा मान्या आदि ने संगोष्ठी में मौजूद थे.
पब्लिसिटी के लिए नहीं पब्लिक के लिए काम करना ही पत्रकारिता है....