सेमिनार का बनना है हिस्सा तो इस विश्वविद्यालय में नामांकन लें - मधेपुरा खबर Madhepura Khabar

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31 जुलाई 2022

सेमिनार का बनना है हिस्सा तो इस विश्वविद्यालय में नामांकन लें

मधेपुरा: बीएनएमयू में स्थापना के तीन दशक बाद भी पढ़ाई, परीक्षा और परिणाम दुरुस्त व समय पर नहीं हो पा रहा, नहीं ईमानदार पहल की गई. वर्तमान हालात की तो बात ही जुदा हैं. दूसरी ओर मापदंडों की धज्जियां उड़ाते हुए सेमिनारों की बाढ सी आ गई है ये बातें वाम छात्र संगठन एआईएसएफ के बीएनएमयू प्रभारी हर्ष वर्धन सिंह राठौर ने कुलपति को पत्र लिख कही. राठौर ने कुलपति को लिखे पत्र में कहा कि महाविद्यालय, विश्वविद्यालय अथवा प्रांतीय स्तर की तो अब चर्चा भी नहीं होती. राष्ट्रीय, अन्तर्राष्ट्रीय सेमिनार बड़ी संख्या में हो रहे हैं जिसमें मापदंडों की अनदेखी और कमाने खाने के लिए हर स्तर के कुकर्म किए जा रहे हैं. 

विगत दिनों बीएनएमयू के शिक्षा शास्त्र विभाग के कार्यक्रम में बीएनएमयू की प्रतिकुलपति ने भी इसपर कड़ी नाराजगी जताते हुए कहा भी कि इधर कुछ दिनों में सेमिनार की बाढ सी आ गई है स्तर इतना गिर गया है कि आपस में गेट टुगेदर भी लोग हो रहे हैं तो उसे सेमिनार की संज्ञा दी जा रही है इस पर हर हाल में रोक लगनी चाहिए. वहीं उन्होंने आरोप लगाया कि यूजीसी अनुदानित कहकर लगातार सेमिनार किए जा रहें है और इस नाम पर पैसों का बड़ा खेल चल रहा है जबकि अधिकांश सेमिनार यूजीसी अनुदानित होते भी नहीं. एमएलटी कॉलेज सहरसा में 30-31 जुलाई को हो रहे अन्तर्राष्ट्रीय सेमिनार पर सवाल उठाते हुए उन्होंने कहा कि नियमानुसार विदेश मंत्रालय, यूजीसी से अनुदानित व सम्बन्धित होना चाहिए जो की नहीं है ऐसे में इस सेमिनार का क्या औचित्य है.

वहीं दूसरी तरफ कॉलेज द्वारा दो माह से कम अंतराल में दो अन्तर्राष्ट्रीय सेमिनार कराया जा रहा है लेकिन लचर शैक्षणिक व्यवस्था सुधारने की व्यवस्था नहीं हो रही. छात्र नेता राठौर ने कहा कि सेमिनार के नाम पर शोधार्थियों से ली जाने वाली राशि जहां इसी कॉलेज में डेढ़ माह पहले सात सौ रुपए थी वहीं इस सेमिनार में एक हजार लिया जा रहा है ऐसी ही बेतहाशा वृद्धि अन्य क्षेत्रों भी है जो शोषण व मनमानी का प्रमाण है. श्रीलंका के जिस डॉ डब्लयू एम गायत्री के नाम की चर्चा कर जहां सेमिनार के नाम पर जमकर गोलमाल किया गया अब आखिरी समय में उनका ऑनलाइन संबोधन करवा कालम पूरा किया गया. साथ ही इस अन्तर्राष्ट्रीय सेमिनार में अन्य देशों को छोड़िए भारत के भी राज्यों की मजबूत भागीदारी नहीं है. जो अन्तर्राष्ट्रीय शब्दों के मजाक बनाते नजर आ रहे हैं. 

राठौर ने साफ शब्दों में कहा कि बीएनएमयू में जहां पहले सेमिनार चिंतन, मंथन व विद्वानों के विचारों के आदान प्रदान का केंद्र होता था वहीं अब यह पूरी तरह कमाने खाने व छात्रों व अन्य स्रोत से प्राप्त पैसों का बन्दर बांट का केंद्र बिंदु बनकर रह गया है. उन्होंने छात्रों व आमलोग से अपील किया कि सेमिनार की सच्चाई, यूजीसी, विदेश मंत्रालय से मान्यता, सम्बन्धता की पड़ताल करके ही भाग लें बैनर पर अंकित व पोस्टर पर्चा पर लिखे मात्र को ही आधार न बनाएं क्योंकि अभी यूजीसी से मान्यता, राष्ट्रीय, अन्तर्राष्ट्रीय शब्द का ढिंढोरा पीट बेवकूफ बना खूब पैसों का खेल हो रहा है. 

विगत दिनों विश्वविद्यालय मुख्यालय के शिक्षाशास्त्र विभाग में प्रतिकुलपति के बयान का हवाला देते राठौर ने मांग किया कि कुलपति, प्रतिकुलपति व अन्य पदाधिकारियों को चादर, बुके, लजीज व्यंजनों के आंनद के बजाय ऐसे फर्जी आयोजनों पर नकेल कसने की पहल करनी चाहिए अन्यथा यह समझ बनेगी की सबके मिलीभगत से सेमिनारों के नाम पर यह गोलमाल चल रहा है. पत्र में राठौर ने मांग किया कि विश्वविद्यालय अगर स्पष्ट करे की पिछले दो सालों में हुए राष्ट्रीय, अन्तर्राष्ट्रीय सेमिनारों में कितने यूजीसी, विदेश मंत्रालय व अन्य सम्बन्धित मंत्रालय व विभाग से मान्यता प्राप्त व सम्बन्ध रहा है. तो बड़े स्तर पर चल रहे फर्जीवाड़े की पोल खुलेगी.
(रिपोर्ट:- ईमेल) 
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