देखता हूं छुप-छुपकर हर वक्त तेरे स्टेटस को, सोचता हूं तू ऑनलाइन आई तो नहीं.
जी करता है भेज दूँ कुछ मैसेज, लेकिन डरता हूं कहीं पढ़ ले तेरा भाई तो नहीं.
जब-जब तुम लगाते हो स्टेटस पर अपना पिक, सोचता हूं, खुदा ने किसी और को ऐसा बनाया तो नहीं.
जब कभी फोन करने को जी करता है, तब डर लगा रहता है कहीं हो जाए पिटाई तो नहीं.
आती है यूं हिचकियां जब, झट ऑनलाइन आता हूं, सोचता हूं तू ऑनलाइन बुलाई तो नहीं.
ऑनलाइन रहकर भी जब रिप्लाई नहीं देते हो, तब सोचता हूं, कहीं हो गई तू पराई तो नहीं.
देखता हूं छुप-छुपकर हर वक्त तेरे स्टेटस को, सोचता हूं तू ऑनलाइन आई तो नहीं.
(कल्पना:- आशीष कुमार सत्यार्थी)