क्रांतिकारी परिवर्तन की शुरूआत है नई शिक्षा नीति: कुलपति - मधेपुरा खबर Madhepura Khabar

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27 फ़रवरी 2021

क्रांतिकारी परिवर्तन की शुरूआत है नई शिक्षा नीति: कुलपति

मधेपुरा: भारत की नई शिक्षा नीति भारत सरकार द्वारा 29 जुलाई, 2020 को घोषित की गई है. यह शिक्षा के क्षेत्र में एक क्रांतिकारी परिवर्तन की शुरूआत है. हमें इसके सम्यक् क्रियान्वयन के लिए विभिन्न स्तरों पर ठोस पहल करने की जरूरत है. यह बात कुलपति प्रो. (डॉ.) राम किशोर प्रसाद रमण ने कही वे शनिवार को भारतीय शिक्षण मंडल एवं नीति आयोग के संयुक्त सौजन्य से शिक्षाशास्त्र विभाग, भूपेन्द्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय, मधेपुरा में आयोजित सेमिनार/ वेबिनार में अध्यक्षीय अभिभाषण दे रहे थे. 

इसका विषय "नई शिक्षा नीति का क्रियान्वयन : चुनौतियाँ एवं संभावनाएँ" था. उन्होंने कहा कि नई शिक्षा नीति के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए केंद्र एवं राज्य सरकार के बीच सहयोग एवं समन्वय की जरूरत है. मौजूदा कानूनों में सुधार करने और कई नए कानूनों का निर्माण करना भी आवश्यक है. वित्तीय संसाधनों में वृद्धि एवं उसका समुचित प्रबंधन करने, पाठ्यक्रमों में बदलाव, नए शिक्षण संस्थानों की स्थापना और योग्य शिक्षकों की नियुक्ति एवं उनका समुचित प्रशिक्षण भी जरूरी है.  
उन्होंने कहा कि शिक्षा ही किसी भी देश एवं उसके नागरिकों की प्रगति का मुख्य आधार है. इसलिए भारत सरकार ने मौजूदा शिक्षा प्रणाली में अपेक्षित बदलावों के लिए नई शिक्षा नीति की घोषणा की है. यह विद्यार्थियों को जाब सीकर नहीं, बल्कि जाॅब क्रिएटर बनाएगी. मुख्य अतिथि नीलाम्बर-पीताम्बर विश्वविद्यालय, डालटनगंज (झारखंड) के कुलपति प्रो. (डॉ.) राम लखन सिंह ने कहा कि युगों-युगों से भारत में गुरूकुल शिक्षा पद्धति चल रही थी. हमारी यह प्राचीन शिक्षा पद्धति काफी विकसित थी और हम विश्वगुरू कहलाते थे. 1830 में केवल बिहार एवं बंगाल में एक लाख से अधिक गुरूकुल थे. 

उन्होंने कहा कि अंग्रेजों की साम्राज्यवादी नीति ने हमारी शिक्षा-पद्धति को हाशिये पर ला खड़ा किया. विशेषकर 1835 में आई मैकाले की शिक्षा नीति ने भारतीय शिक्षा नीति को काफी नुकसान पहुंचाया. अब पुनः भारत एवं भारतीयता को केंद्र में रखकर एक शिक्षा नीति बनाई गई है. यह नई शिक्षा नीति वास्तव में राष्ट्रीय शिक्षा नीति हैै. यह हमारी प्राचीन शिक्षा नीति को पुनः प्रतिष्ठत करने का प्रयास है. इस शिक्षा नीति का क्रियान्वयन हमारी मुख्य चुनौति है. इसके क्रियान्वयन के लिए हमें शिक्षण संस्थानों में आधारभूत संरचनाओं का विकास करना होगा और शिक्षकों कमी दूर करनी होगी.  
उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति में भारत की भाषा, संस्कृति एवं परिवेश पर काफी ध्यान दिया गया है. हम मातृभाषा में शिक्षा प्राप्त कर सकेंगे और अपने परिवेश का प्रकटीकरण कर सकेंगे. उन्होंने विवेकानन्द को उद्धृत करते हुए कहा कि शिक्षा का मुख्य उद्देश्य हमारे अंदर अतर्निहित क्षमताओं का प्रकटीकरण है. उद्धाटनकर्ता भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली के अध्यक्ष प्रो. (डॉ.) रमेशचन्द्र सिन्हा ने कहा कि नई शिक्षा नीति में भारतीय दर्शन एवं संस्कृति पर काफी ध्यान दिया गया है. यह भारतीय जीवन मूल्यों को केंद्र में रखकर बनाई गई है. 

उन्होंने कहा कि नई शिक्षा नीति में मातृभाषा पर काफी ध्यान दिया गया हैै. मातृभाषा के माध्यम से ही सृजनात्मकता आती है. अन्य भाषाओं में सृजनशिलता नहीं आ पाती है. टी एस इलियट की तरह का कोई भारतीय अंग्रेजी में नहीं लिख पाया. संस्कृत में कालीदास, वाचस्पति मिश्र, मंडन मिश्र एवं गंगेश उपाध्याय की रचनाओं का काफी महत्व है. यदि ये लोग अंग्रेजी में लिखते तो शायद यह नहीं हो सकती. विशिष्ट अतिथि बीएनएमयू, मधेपुरा की प्रति कुलपति प्रो. (डॉ.) आभा सिंह ने भारत की मूल विशेषता उसकी आध्यात्मिकता है. आध्यात्मिकता एवं दर्शन ही रचनात्मकता का आधार है.

उन्होंने कहा कि नई शिक्षा नीति की यह बड़ी विशेषता है कि यह रटंत विद्या को छोड़कर रचनात्मकता पर जोर देती है. रचनात्मकता की शुरूआत बचपन से ही होती है. अतः स्कूली शिक्षा पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि सभी बच्चों को समान एवं गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध करानी होगी. पाठ्यक्रमों में सम्यक् परिवर्तन लाना होगा और मूल्याकंन पद्धति में आमूल-चूल बदलाव लाने होंगे. हमें श्रेष्ठ प्रतिभाओं को शिक्षण पेशे से जोड़ना होगा. इसके लिए शिक्षण पेशे को प्रतिष्ठा के साथ-साथ सुविधाओं से भी जोड़ना होगा. 

उन्होंने कहा कि आज पारंपरिक शिक्षा हाशिए पर है. वोकेशनल एवं प्रोफेशनल कोर्स की बाढ़ आ गई है. लेकिन इन कोर्सों के बाद भी विद्यार्थियों को कोई अच्छा रोजगार नहीं मिल पाता है. मुख्य वक्ता कोलहन विश्वविद्यालय, धनबाद (झारखंड) के डॉ. सुशील कुमार तिवारी ने कहा कि नई शिक्षा नीति का मूलमंत्र मानता है. शिक्षा में स्वदेशी भाव का जागरण ही इसका मुख्य उद्देश्य है. यह शिक्षा के क्षेत्र की सभी समस्याओं के सम्यक् समाधान का प्रयास है. 

उन्होंने कहा कि भारत में पुनः विश्व गुरु बनने की क्षमता है. नई शिक्षा नीति पुनः भारत को शिक्षा के क्षेत्र में अग्रणी बनाएगी. भारतीय शिक्षा का पुनरुत्थान करेगी और नालंदा, विक्रमशिला एवं तक्षशिला के गौरब को पुनः स्थापित करेगी. उन्होंने कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा में शिक्षक को आचार्य कहते हैं. हमारे यहाँ आचार्यों का महत्व राजाओं से भी अधिक था. हमें पुनः शिक्षकों के अंदर आत्म गौरवबोध लाना है और समाज में शिक्षकों को समुचित प्रतिष्ठा दिलानी है.  
इस अवसर पर सम्मानित वक्ता के रूप में भारतीय शिक्षण मंडल के ओमप्रकाश सिंह, मानविकी संकायाध्यक्ष प्रो. (डॉ.) उषा सिन्हा, पूर्व डीएसडब्लू प्रो. (डॉ.) नरेन्द्र श्रीवास्तव एवं अकादमिक निदेशक प्रो. (डॉ.) एम. आई. रहमान ने भी अपने-अपने विचार व्यक्त किए. इसके पूर्व कार्यक्रम की शुरुआत में पार्वती विज्ञान महाविद्यालय की हेमा कुमारी ने मंगलाचरण प्रस्तुत किया. अतिथियों का स्वागत शिक्षाशास्त्र विभाग के प्रोफेसर इंचार्ज प्रो. (डॉ.) नरेश कुमार एवं धन्यवाद ज्ञापन महाविद्यालय निरीक्षक कला डाॅ. ललन प्रसाद अद्री ने की. 

संचालन जनसंपर्क पदाधिकारी डाॅ. सुधांशु शेखर ने किया. इस अवसर पर डाॅ. जितेन्द्र कुमार सिंह, डाॅ. विनय कुमार चौधरी, डाॅ. अरूण कुमार, डाॅ. राम सिंह यादव, शिक्षण मंडल के विस्तारक आनंद कुमार, शोधार्थी सौरभ कुमार, अमरेश कुमार अमर, सौरभ कुमार चौहान, माधव कुमार, संजीव कुमार, मुकेश कुमार, संतोष कुमार आदि उपस्थित थे.
(रिपोर्ट:- ईमेल) 
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