मधेपुरा: यूनाइटेड फोरम ऑफ बैंक यूनियंस के आह्वान पर बैंकों के निजीकरण के विरोध में बैंक कर्मियों के दो दिवसीय देशव्यापी हड़ताल का असर दूसरे दिन भी कायम रहा. इस दौरान राष्ट्रीयकृत बैंकों में तो ताले लटके हैं. वहीं, दूसरे दिन हड़ताल के समर्थन में कुछ निजी एवं ग्रामीण व सहकारी बैंक भी बंद हैं. बैंक कर्मियों के इस दो दिवसीय हड़ताल से जहां राज्य में छह से सात हजार करोड़ रुपये का कारोबार प्रभावित हुआ, वहीं रांची में तकरीबन दो हजार करोड़ रुपये का बैंकिंग लेनदेन और लगभग 20 हजार चेक क्लीयरेंस प्रभावित होने का अनुमान है. बताया गया कि राज्य भर में विभिन्न बैंकों की शाखाओं में दूसरे दिन भी ताला लटका रहा.
इधर, बैंक हड़ताल का असर जिले में स्थित विभिन्न बैंकों के एटीएम पर भी दिखा. पहले दिन तो एटीएम में पर्याप्त कैश रहने की वजह से तो खास परेशानी नहीं हुई. लेकिन दूसरे दिन धन निकासी के लिए लोग एक एटीएम से दूसरे एटीएम का चक्कर लगाते रहे. लेकिन कैश की किल्लत की वजह से ग्राहक सारा दिन हैरान-परेशान रहे. बैंक कर्मियों ने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा संसद के शीतकालीन सत्र में बैंकिंग अधिनियम 1979 एवं 1980 और बैंकिंग रेगुलेशन एक्ट 1940 में संशोधन करने का प्रस्ताव रखा जाएगा. सरकार पूंजीपतियों के हित को ध्यान में रखते हुए बैंकों का निजीकरण करना चाहती है.
इससे आम आदमी को नुकसान होगा. अगर सरकार ने हमारी मांगों पर गौर नहीं किया तो हम अनिश्चितकालीन हड़ताल करेंगे. इससे देश में वित्तीय संकट की स्थिति पैदा होगी और इसके लिए केंद्र सरकार ही जिम्मेवार होगी. निजीकरण का प्रस्ताव लाकर सरकार अपनी हठधर्मिता का परिचय देकर गरीबों का हक मार रही है. बैंक निजीकरण बिल द्वारा भारत की आर्थिक व्यवस्था को पूंजीपतियों के हाथों बेचने के विरोध में बैंक कर्मी हड़ताल पर हैं. यदि बैंक का निजीकरण हुआ तो एक बार फिर से सामंतवाद को बढ़ावा मिलेगा और देश में बेरोजगारों की संख्या और बढ़ेगी. गरीबों का बैंकों में जमापूंजी खतरे में पड़ सकता है. जिसका हम विरोध कर रहे हैं.
(रिपोर्ट:- सुनीत साना)
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