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27 जून 2021

होगा शोध कार्य से संबंधित कई प्रावधान

मधेपुरा: बीएनएमयू, मधेपुरा के कुलपति प्रोफेसर डाॅ. आर. के. पी. रमण विश्वविद्यालय में शोध गतिविधियों को गति देने का प्रयास कर रहे हैं. उन्होंने विश्वविद्यालय में शोध का बेहतर माहौल बनाने तथा गुणवत्तापूर्ण शोध को बढ़ावा देने हेतु कई निर्णय लिए हैं. जनसंपर्क पदाधिकारी डाॅ. सुधांशु शेखर ने बताया कि गत दिनों सभी संकायों के स्नातकोत्तर गवेषणा परिषद् की बैठक संपन्न हुई और उनमें सभी विभागों की विभागीय शोध परिषद् से प्राप्त प्रस्तावों पर आवश्यक निर्णय लिया गया. तदनुसार आगे की प्रक्रिया अपनाई जाऐगी. 

नए शोधार्थियों का पी-एच. डी पंजीयन की प्रक्रिया पूरी की जाएगी. पीएटी-2019 के तहत पी-एच. डी. कोर्स वर्क में नामांकित शोधार्थियों का पंजीयन नामांकन म की तिथि से ही मान्य होगा. ये नामांकन की तिथि से न्यूनतम तीन वर्षों के बाद शोध-प्रबंध जमा कर सकेंगे. डाॅ. शेखर ने बताया कि आगे विश्वविद्यालय में जमा किए जाने वाले सभी पी-एच. डी. शोध-प्रबंधों में एकरूपता रहेगी. इस संदर्भ में प्रति कुलपति की अध्यक्षता में गठित कमिटी द्वारा आवश्यक निर्णय लिया जाएगा. यह कमिटी सभी शोध-प्रबंधों के लिए एक समान टाइपिंग, बाइंडिंग, टाइटल स्टाइल एवं कवर पेज आदि का प्रारूप तय करेगी.  
साथ ही सभी शोधार्थियों के घोषणापत्र, शोध-निदेशक के प्रमाणपत्र एवं विभागाध्यक्ष के प्री-सब्मिशन सर्टिफिकेट का प्रारूप भी निर्धारित किया जाएगा. डाॅ. शेखर ने बताया कि शोध-प्रबंध को अवार्ड हेतु जमा करने के पूर्व प्लैग्रिज्म जाँच से गुजारा जाएगा. भारत के राजपत्र असाधारण, भाग-3, खंड-4, 23 जुलाई, 2018 की अधिसूचना के आलोक में विश्वविद्यालय के पूर्व स्थापित प्लैग्रिज्मम डिटेक्शन सेंटर (पीडीसी) को पुनः क्रियाशील किया जाएगा. साथ ही विश्वविद्यालय स्तर पर एक शैक्षिक सत्यनिष्ठा पेनल (आईएआईपी) तथा विभागवार विभागीय शैक्षिक सत्यनिष्ठा पेनल (डीएआईपी) का गठन किया जाएगा. 

इस हेतु विश्वविद्यालय समन्वयक पीडीसी सह निदेशक (अकादमिक) डाॅ. एम. आई. रहमान को अधिकृत किया गया. डाॅ. शेखर ने बताया कि यदि शैक्षिक समुदाय का कोई सदस्य उपयुक्त प्रमाणपत्र के साथ संदेह व्यक्त करता है कि किसी दस्तावेज में साहित्यिक चोरी का कोई प्रकरण बनता है, तो वह इस मामले की जानकारी विभागीय शैक्षिक सत्यनिष्ठा पेनल (डीएआईपी) को देगा. डीएआईपी ऐसी शिकायत की प्राप्ति पर मामले की जाँच करेगा तथा अपनी सिफारिश विश्वविद्यालय स्तर पर एक शैक्षिक सत्यनिष्ठा पेनल (आईएआईपी) को सौंपेगा.  
आईएआईपी स्वयंमेव भी साहित्यिक चोरी का संज्ञान ले सकते हैं और नियमानुसार कार्रवाई कर सकते हैं. डाॅ. शेखर ने बताया कि पीएचडी विनियम 2016 के क्लाउज-12 के अनुसार शोध-प्रबंध को भी विश्वविद्यालय वेबसाइट एवं शोध-गंगा/ इन्फलिवनेट पर भी अपलोड किया जाएगा. इसी विनिमय के क्लाउज 8.5 के आलोक में पीजीआरसी से अनुमोदित सभी शोध-प्रारूपों को अनिवार्यतः विश्विविद्यालय की वेबसाइट पर डाला जाएगा. डाॅ. शेखर ने बताया कि विश्वविद्यालय में पी-एच. डी. शोध-प्रबंध जमा करने हेतु अवधि विस्तारण के अधिकांश मामलों का निष्पादन होने की संभावना है. 

विश्वविद्यालय के ज्ञापांक-जीएस (डीआरए-26/20)-681/20, दिनांक-02. 09. 2020 के तहत वैसे शोधार्थी, जो कोरोनाकाल/लाॅकडाउन अवधि में अपना पी-एच. डी. शोध- प्रबंध विश्वविद्यालय में समर्पित नहीं कर पाए हैं को छह माह का अवधि विस्तारीकरण दिया गया था. आगे 16 मार्च, 2021 को जारी यूजीसी के पत्र के आलोक में ऐसे शोधार्थियों के लिए पी-एच. डी. शोध-प्रबंध समर्पण और शोध आलेख के प्रकाशन एवं सेमिनार/सम्मेलन में शोध आलेख की प्रस्तुति हेतु अंतिम तिथि 31 दिसंबर, 2021 तक पुनः विस्तारित की गई है. 
(रिपोर्ट:- ईमेल) 
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