कोसी में शिक्षा के विश्वकर्मा कीर्ति को आज भी है उचित सम्मान का इंतजार - मधेपुरा खबर Madhepura Khabar

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6 मार्च 2024

कोसी में शिक्षा के विश्वकर्मा कीर्ति को आज भी है उचित सम्मान का इंतजार

मधेपुरा: 18 अगस्त 1911 को मधेपुरा के मनहरा सुखासन में जन्मे कीर्ति नारायण मंडल कर्म के मार्ग पर इतने आगे निकल गए कि जमींदार परिवार से आने के बाद भी उनकी अलग पहचान स्थापित हुई. मधेपुरा सहित कोसी में उच्च शिक्षा का माहौल बनाने में इनकी अहम भूमिका रही जिसका सुखद परिणाम आज उच्च के विभिन्न क्षेत्रों में मधेपुरा का बढ़ता कदम है. कीर्ति बाबू द्वारा आगे चलकर मधेपुरा को उच्च शिक्षा का केंद्र बनाने के लिए कॉलेज स्थापना की पहल शुरू हुई लेकिन पिता जमीन देने को तैयार नहीं थे फिर क्या था राष्ट्रीय छात्रावास में ही भूख हड़ताल शुरू कर दिया फिर मां के पहल पर पिता 52 बीघा जमीन देने को राजी हुए और इस तरह टी पी कॉलेज के स्थापना का रास्ता साफ हुआ. मानों यह आगाज था इसके बाद तो कीर्ति बाबू ने शिक्षण संस्थानों के स्थापना की लाइन ही लगा दी. 

लगातार समाज के सहयोग व विरोध की धारा में अपने चट्टानी निश्चय के सहारे मधेपुरा, सहरसा, सुपौल, अररिया, कटिहार कई शिक्षण संस्थानों की स्थापना अलग अलग प्रारूपों में की जो आज शिक्षा के क्षेत्र मे लगातार यहां की इंद्रधनुषी प्रतिभाओं को निखार रहा है. यह कहना गलत न होगा कि कीर्ति बाबू ने ईश्वर की सर्वोत्तम कृति मानव जीवन के कर्तव्य की वह परिभाषा गढ़ी जो जो हर दौर में समाज में एक नजीर के रूप में सम्मानित किया जाएगा. कीर्ति बाबू का योगदान इतना बड़ा था कि तत्कालीन लोक सभा अध्यक्ष बलराम जाखड़ ने कोसी का मालवीय, मुख्यमंत्री दारोगा प्रसाद राय ने कोसी का संत, मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्र ने महान तपस्वी कह कर उनका सम्मान किया था. समाज ने उन्हें एक विचारधारा, महान सपूत, शिक्षा जगत का विश्वकर्मा, विद्या का पुजारी और न जाने क्या क्या उपमा दी. 

सात मार्च 1997 को इस महामना ने इस दुनिया से विदा ली लेकिन उनका योगदान आज भी उन्हें अमरत्व प्रदान कर रहा है. यकीनन उन्हें कोसी में शिक्षा जगत का विश्वकर्मा कहना गलत न होगा. आज यह नितांत आवश्यक है कि कीर्ति नारायण मंडल के योगदानों को सहेजा जाए. उनके जीवन पथ को वर्तमान पीढ़ी को अध्यन करने की जरूरत हैै. दुखद है उनके द्वारा स्थापित शिक्षण संस्थानों में भी उनकी जयंती व पुण्यतिथि के आयोजन के प्रति गंभीरता नहीं दिखाई जाती. जबकि उनके द्वारा अपने पिता के नाम पर स्थापित टी पी कॉलेज बीएनएमयू के स्थापना की आधारशिला बनी थी. दरभंगा विश्वविद्यालय में उन पर शोध सुखद संकेत है लेकिन अपने ही क्षेत्र में उनके प्रति उदासीनता चिंतनीय भी. 


कीसेर्ति बाबू जैसे महामना की जयंती और पुण्यतिथि पर उनके द्वारा स्थापित कॉलेजों में ही कायम विवाद शर्मनाक है. टीपी कॉलेज और संत अवध कॉलेज में स्थापित प्रतिमा स्थल पर जहां जयंती पुण्यतिथि में मतभेद है वहीं पार्वती साइंस कॉलेज में इसका उल्लेख भी नहीं है जिससे हर साल उहापोह की स्थिति में व्यापक स्तर पर आयोजन नहीं हो पाता. जरूरत है कि इसका अविलंब समाधान कर व्यापक स्तर पर जयंती और पुण्यतिथि का आयोजन हो अगर संभव हो तो कीर्ति बाबू की जयंती विश्वविद्यालय स्तर पर भी जरूर मनें यही उनके पुण्यतिथि पर सच्ची श्रद्धांजलि होगी.

(रिपोर्ट:- ईमेल)

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